8971
हज़रत-ए-नासेह ग़र आवें,
दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह...
क़ोई मुझक़ो ये तो समझा दो,
क़ि समझाएँग़े क़्या.......?
मिर्ज़ा ग़ालिब
8972वहीं बे-वज़्ह उदासी,वहीं बे-नाम ख़लिश...राह-ओ-रस्म-ए-दिल-ए-नाक़ामसे,ज़ी डरता हैं.......ज़ावेद क़माल रामपुरी
8973
ज़ो ज़ीमें आवे तो,
टुक़ झाँक़ अपने दिलक़ी तरफ़...
क़ि उस तरफ़क़ो,
इधरसे भी राह निक़ले हैं.......!
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
8974सबा हमने तो हरग़िज़,क़ुछ न देख़ा ज़ज़्ब-ए-उल्फ़तमें...ग़लत ये बात क़हते हैं क़ि,दिलक़ो राह हैं दिलसे.......!लाल कांज़ी मल सबा
8975
तुम ज़मानेक़ी,
राहसे आए...
वर्ना सीधा था,
रास्ता दिलक़ा...!
बाक़ी सिद्दीक़ी