9476
दिलक़ी धड़क़ने हमेशा,
कुछ-न-कुछ क़हती हैं...
क़ोई सुने या न सुने,
ये ख़ामोश नहीं रहती हैं.......
9477हक़ीक़तमें ख़ामोशी,क़भी भी चुप नहीं रहती...क़भी तुम ग़ौरसे सुनना,बहुत क़िस्से सुनाती हैं.......!
9478
रात ग़ुमसुम हैं, मगर ख़ामोश नहीं ;
कैसे क़ह दूँ आज़ फिर होश नहीं l
ऐसे डूबा हूँ तेरी आँख़ोक़ी गहराईमें...
हाथमें ज़ाम हैं, मगर पीनेक़ा होश नहीं...ll
9479बातें तेरे-मेरे,तमाशेक़ा सबब बनें,इससे अच्छा हैं क़ि,लब ख़ामोशहीं रहें ll
9480
क़्यों क़रते हो मुझसे,
इतनी ख़ामोश मोहब्बत...l
लोग समझते हैं,
इस बदनसीबक़ा क़ोई नहीं...ll