15 April 2022

8496 - 8500 नक़्श आँख़ वफ़ा ठोक़र ग़ुल्सिताँ रौशन महक़ इशारा क़ाफ़िले राहें शायरी

 

8496
क़िस मस्त अदासे आँख़ लड़ी,
मतवाला बना लहराक़े ग़िरा !
आगे तो हैं राहें और क़ठिन,
दिल पहले ही ठोक़र खाक़े ग़िरा !!!
                                     आरज़ू लख़नवी

8497
कुछ रोज़से दिलने,
तिरी राहें नहीं देख़ीं...l
क़्या बात हैं...,
तू याद भी आया नहीं इतना...ll
अदीम हाशमी

8498
ग़ुज़रे हैं वो इधरसे,
तस्दीक़ हो रही हैं...
ग़ुल हैं, ग़ुल्सिताँ हैं,
महक़ी हुई हैं राहें...!!!
                  मानी नाग़पुरी

8499
वो राहें आज़ भी,
नक़्श--वफ़ासे हैं रौशन...
मिज़ाज़दान--मोहब्बत,
ज़िधरसे ग़ुज़रे हैं.......
क़शफ़ी लख़नवी

8500
इक हसीं.
आँख़क़े इशारेपर...
क़ाफ़िले राह,
भूल ज़ाते हैं.......
            अब्दुल हमीद अदम

13 April 2022

8491 - 8495 आहट दिल तन्हा रूह रौशन अज़नबी क़ारवाँ इंतिज़ार आरज़ू इंक़ार राहें शायरी

 

8491
दिलक़ी राहें,
रौशन क़रते रहते हैं...
क़िसक़े घुंघरू,
छन-छन क़रते रहते हैं...!
                     नदीम फ़ाज़ली

8492
सूनी सूनीसी,
अज़नबी राहें ;
आरज़ूओंक़ा,
क़ारवाँ तन्हा ll
मदहोश बिलग्रामी

8493
ये रूहोंक़े मिलनक़ी,
क़र दे मसदूद राहें...
क़ि हाइल इस मिलनमें,
अब बदन होने लग़ा हैं.......
                    तबस्सुम अनवार

8494
इंतिज़ार उसक़ो,
हमा-वक़्त मिरा रहता हैं...
मिरी आहटसे धड़क़ ज़ाती हैं,
राहें उसक़ी.......
रिज़वान सईद

8495
दिलपर सौ राहें,
ख़ोलीं इंक़ारने ज़िसक़े...
साज़ अब उसक़ा नाम,
तशक्कुरसे ही लेना...
                अब्दुल अहद साज़

12 April 2022

8486 - 8490 ज़िंदगी ज़ज़्बात इश्क़ तलाश मज़नूँ हुस्न निग़ाहें आँख़ राहें शायरी

 

8486
बहुत सूनी सूनी हैं,
लैलाक़ी राहें...
क़ि मज़नूँक़ा दिल,
बेसदा हो ग़या हैं.......
                सालिक़ लख़नवी

8487
पर्दे पर्देमें ये क़र लेती हैं,
राहें क़्यूँक़र...
पार हो ज़ाती हैं सीनेक़ी,
निग़ाहें क़्यूँक़र.......
रियाज़ ख़ैराबादी

8488
दूर रहा तो,
राहें देख़ें...!
पास आया तो,
आँख़ ख़ोली...!!!
       फ़र्रुख़ ज़ोहरा ग़िलानी

8489
ज़िंदगीक़ी ज़ितनी भी,
दुश्वार हैं राहें लेक़िन...
आपक़े एक़ इशारेसे,
ग़ुज़र ज़ाती हैं.......
मुक़द्दस मालिक़

8490
ज़ज़्बात--इश्क़ने,
नई राहें तलाश लीं...
अर्बाब--हुस्नक़े भी,
बहाने बदल ग़ए.......
                   शाहीन भट्टी

10 April 2022

8481 - 8485 हुस्न बला इश्क़ फ़ूल ज़ुल्फ़ ज़ीस्त मंज़िल तलाश राहें शायरी

 

8481
इक़ दरपें सर झुक़ा लिया,
राहें बदल ग़ईं...
ज़ितनी बलाएँ सरपें थीं,
सारी ही टल ग़ईं.......
                        मोहसिन अहमद

8482
रंग़ी रंग़ी इश्क़क़ी राहें,
मंज़िल मंज़िल हुस्नक़े डेरे !
सूफ़ी तबस्सुम

8483
एक़ मंज़िल हैं,
मुख़्तलिफ़ राहें...
रंग़ हैं बेशुमार,
फ़ूलोंक़े.......!
      नईम जर्रार अहमद

8484
सख़्त उलझी हैं,
ज़ीस्तक़ी राहें...
ज़ुल्फ़क़े पेच--ख़मक़ी,
बात क़र.......
सूफ़ी तबस्सुम

8485
ज़ाने क़ितनी ही राहें,
तलाश क़र बैठे...
तुम्हारे इश्क़क़ी क़ोई,
डग़र नहीं मिलती.......
              सय्यद वासिफ़ हसन

8 April 2022

8476 - 8480 इश्क़ इंतज़ार आशिक़ी आँख़ हसरत राहनुमा तज़ुर्बा ज़िंदग़ी रास्ता राहें शायरी

 

8476
आया हैं इक़ राहनुमाक़े,
इस्तिक़बालक़ो इक़ बच्चा ;
पेट हैं ख़ाली, आँख़में हसरत,
हाथोंमें ग़ुलदस्ता हैं.......
                         ग़ुलाम मोहम्मद

8477
तमाम रात मेरे घरक़ा,
एक़ दर ख़ुला रहा...
मैं राह देख़ता रहा,
वो रास्ता बदल ग़या...

8478
अनज़ानसी राहोंपर चलनेक़ा,
तज़ुर्बा नहीं था...
इश्क़क़ी राहने मुझे,
एक़ हुनरमंद राही बना दिया...

8479
राहमें ख़ड़े होक़र,
तेरा ही इंतज़ार क़िया हैं l
हमनें भी सनम तुमसे,
उतना ही प्यार क़िया हैं ll

8480
राहें तो बहुत थी ज़िंदग़ीमें,
हम ख़ो ग़ए इश्क़--आशिक़ीमें...
                                   महशर बदायुनी

7 April 2022

8471 - 8475 आँधी ख़ाक़ ज़ख़्मी अज़नबी ज़ुनूं मंज़िल ग़ुलशन राह शायरी

 

8471
ख़ुद अपने पाँव भी लोग़ोंने,
क़र लिए ज़ख़्मी...
हमारी राहमें क़ाँटे,
यहाँ बिछाते हुए...
ज़बतक़ सफ़ेद आँधीक़े,
झोंक़े चले थे...
इतने घने दरख़्तोंसे,
पत्ते ग़िरे थे.......

8472
हर इक़ ज़र्रेमें ज़िसक़े,
सैक़ड़ों ग़ुलशन हैं पोशीदा...
ज़ुनूंक़ी राहमें इक़,
ऐसा भी वीराना आता हैं...!
अलम मुज़फ्फ़रनग़री

8473
अज़नबी बनक़े,
सर--राह मिला था ज़ो अभी...
ये वहीं शख़्स हैं ज़िसने क़भी,
चाहा था मुझे.......!!!

8474
एक़ मंज़िल हैं, मग़र...
राह क़ई हैं, अज़हर ;
सोचना ये हैं क़ि,
ज़ाओग़े क़िधरसे पहले...
अज़हर लख़नवी

8475
हम ख़ाक़में मिले तो मिले,
लेक़िन सिपहर,
उस शोख़क़ो भी,
राहपें लाना ज़रूर था ll

6 April 2022

8466 - 8470 मुसाफ़िर धोख़ा आँख़ें आँसू ज़िंदग़ी तन्हा परछाई राह शायरी

 

8466
कुछ मुसाफ़िरोंक़ो मैंने,
राह भटक़ते देख़ा हैं...
मैंने शातिरक़ो भी,
धोख़ा ख़ाते देख़ा हैं...!

8467
ज़ब थक़ गई मेरी,
आँख़ें राह ताक़ते हुए...
तुझे फ़िर ढूंढने मेरी,
आँख़क़े आँसू निक़ले.......

8468
अदमक़े मुसाफ़िरो,
होशियार.......
राहमें ज़िंदग़ी ख़ड़ी होग़ी...!!!
                           साग़र सिद्दीक़ी

8469
क़ौन क़िसीक़ा होता हैं,
ज़िंदगीक़ी राहमें...
ज़ब अंधेरा होता हैं तो,
परछाई भी साथ छोड़ देती हैं...

8470
राह-ए-ज़िंदगी क़्या बताऊँ...
क़ैसे ग़ुज़र रही हैं...
शामें तन्हा हैं और रातें,
अक़ेली हो ग़यी हैं.......

5 April 2022

8461 - 8465 दिल नज़र दीदार इंतिज़ार मुलाक़ात इश्क़ पुक़ार रिश्ता ख़ातिर राह शायरी

 

8461
दौर--राहमें मुझे कुछ और,
आसान नज़र आता नहीं...
एक़ तेरे इश्क़क़ी बात भी अब,
बसक़ी बात नहीं.......

8462
यूँ सर-ए-राह,
मुलाक़ात हुई हैं l
अक्सर उसने देख़ा भी नहीं,
हमने पुक़ारा भी नहीं.......ll
इक़बाल अज़ीम

8463
राह चलते चलते,
बार बार दुआ क़रता रहा...
ज़ान निक़ली भी तो,
बस एक़ दीदारक़े लिए.......

8464
उसक़ी राहमें मैंने,
इतना इंतिज़ार क़िया...
ज़ो रफ़्ता रफ़्ता दिल मिरा,
बीमार हो ग़या.......
शैख़ ज़हूरूद्दीन

8465
राह देख़ी उसने मेरी,
और वो रिश्ता तोड़ लिया...
ज़िस रिश्तेक़ी ख़ातिर,
मुझसे दुनियाने मुँह मोड़ लिया...

4 April 2022

8456 - 8460 अज़ीब मंज़िल ख़्वाहिश क़दम शौक़ तन्हा राह शायरी

 

8456
सिर्फ़ इक़ क़दम उठा था,
ग़लत राह--शौक़में...
मंज़िल तमाम उम्र,
मुझे ढूँढती रहीं.......
               अब्दुल हमीद अदम

8457
नमक़क़े ड़िब्बेमें,
एक़ चींटी मिली...
क़भी क़भी ग़लत राहपर लोग़,
क़ितना आग़े निक़ल ज़ाते हैं.......

8458
एक़ अज़ीब रिश्ता हैं,
मेरे और ख़्वाहिशोंक़े दरमियाँ...
वो मुझे ज़ीने नहीं देती और,
मैं उन्हें मरने नहीं देता.......
                                          ग़ुलज़ार

8459
मंज़िलका तो पता नहीं,
राहे शायद एक़ ही थी...
हमने वो भी,
अक़ेले ही तय क़िया...

8460
तुम ज़ब क़भी आओगे इस राह...
तो तुम देख़ना ;
तन्हा जैसे छोड़े थे तुमने आज़ भी...
मैं वैसी हूँ तन्हा ll

3 April 2022

8451 - 8455 दीदार इश्क़ महबूब परवाह राह, चाह, तन्हा क़ारवाँ अंज़ाम ख़्वाहिश शायरी

 

8451
बिछड़क़र क़ारवाँसे,
मैं क़भी तन्हा नहीं रहता...
रफ़ीक़े-राह बन ज़ाती हैं,
ग़र्दे-क़ारवाँ मेरी.......
                  ज़लील मानिक़पुरी

8452
हज़ार ख़्वाहिशें हमने,
एक़ साथ तौलक़र देख़ी ;
उफ्फ़... तेरी ये चाहत फ़िर भी,
सबपर भारी निक़ली.......!!!

8453
प्यारक़ी राहमें,
इश्क़क़ी चाहमें...
एक़ दिन ज़रूर होंगे,
अपने महबूबक़ी बाहोंमें...

8454
बस एक़ ही ख़्वाहिश हैं,
मैं बादल बन ज़ाऊँ...
तेरे दिलक़े आँगनमें,
तुझ संग भीग ज़ाऊँ.......

8455
परवाह नहीं ज़मानेक़ी,
या उसक़े अंज़ामक़ी...
चलूंग़ा उसी राहपर,
ज़ो तेरा दीदार मुक़म्मल क़रता हो...

8446 - 8450 ख़्वाहिश मुश्क़िल गुनाह राहत दिल इश्क़ तनहा वफ़ा राह शायरी

 

8446
एक़ ख़्वाहिश हैं मेरी,
लंबी राह हल्क़ी बारिश...
बहुत सारी बातें,
और बस हम और तुम...

8447
राह भी तुम हो,
राहत भी तुम ही हो...!
मेरे सुख़ दुख़क़ो बांटनेवाली 
हमसफ़र भी तुम ही हो.......!!!

8448
फ़िरसे इश्क़की राहमें,
चलना सीखा दिया...
हमे फ़िरसे इश्क़ने,
अपना बना दिया...ll

8449
क़िसीक़े दिलमें,
राह क़िए ज़ा रहा हूँ...
क़ितना हसीन गुनाह,
क़िए ज़ा रहा हूँ.......!

8450
राह--वफ़ामें,
क़ोई हमसफ़र ज़रूरी हैं...
ये रास्ता क़हीं तनहा क़टे,
तो मुश्क़िल हैं.......

31 March 2022

8441 - 8445 ज़िंदग़ी मुसाफ़िर रोशनी चिराग़ मुलाक़ात फ़ितरत निग़ाह क़दम क़सम फ़ूल राह शायरी

 

8441
मेरा तो ज़ो भी क़दम हैं,
वो तेरी राहमें हैं...
क़े तू क़हीं भी रहें,
तू मेरी निग़ाहमें हैं.......

8442
तुझसे ना मिलनेक़ी,
क़सम ख़ाक़र भी...
हर राहमें तुझे हीं,
ढूँढा हैं मैंने.......

8443
ज़िंदग़ीक़ी राहमें मिले होंग़े,
हज़ारों मुसाफ़िर तुमक़ो...
ज़िंदग़ीभर ना भुला पाओग़े,
वो मुलाक़ात हूँ मैं.......!

8444
फ़ूल हम क़िसीक़ी राहमें,
बिछा पाये क़ोई ग़म नहीं...
राहक़े क़ाँटोंक़ो चुनलें हम,
यह भी क़ोई क़म तो नहीं...

8445
ज़िस राहपर हरबार मुझे,
अपना क़ोई छलता रहा l
फ़िर भी ज़ाने क़्यूँ मैं,
उसी राहपर हीं चलता रहा l
सोचा बहुत इस बार,
रोशनी नहीं धुँआ दूँग़ा l
लेक़िनमैं चिराग़ था फ़ितरतसे,
ज़लना था ज़लता रहा ll