23 February 2019

3961 - 3965 जिन्दगी उल्फ़त आँख क़त्ल धडकना साँस याद शौक मजबूर फरियाद परवाह दिल शायरी


3961
हाथोंमें उल्फ़तका नाम होता हैं,
आँखोंमें छलकता जाम होता हैं;
खंजरकी ज़रूरत हैं यहाँ किसे...
यहाँ आँखोंसे क़त्लेआम होता हैं...!

3962
तुझे याद करना भी अब,
दिलका धडकनासा बन गया हैं...
पता ही नहीं ज़िन्दगी,
साँसोंसे चल रही हैं... या तेरी यादोंसे...!

3963
हर कोई किसीकी,
मजबूरी नही समझता...
दिलसे दिलकी,
दुरी नही समझता...
कोई तो किसीके बिना,
मर मरके जीता हैंऔर...
कोई किसीको याद करना भी,
जरूरी नही समझता...

3964
शौकसे तोड़ो दिल मेरा,
मुझे क्या परवाह...
तुम ही रहते हो इसमें,
अपना ही घर उजाडोगे...!

3965
साथ ना छूटे आपसे कभी,
यह दुआ करता हूँ;
हाथोंमें सदा आपका हाथ रहे,
बस यही फरियाद करता हूँ;
हो भी जाये अगर कभी,
दूरी हमारे दरमियान;
दिलसे ना हों जुदा,
रबसे यही इल्तिजा करता हूँ...

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