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अपनी वुसअतमें,
ख़ो चुक़ा हूँ मैं ;
राह दिख़ला सक़ो तो,
आ ज़ाओ.......!
सैफ़ुद्दीन सैफ़
8667ये तज़रबा हुआ हैं,मोहब्बतक़ी राहमें...ख़ोक़र मिला ज़ो हमक़ो,वो पाक़र नहीं मिला.......हस्तीमल हस्ती
8668
नई मंज़िलक़ा ज़ुनूँ,
तोहमत-ए-ग़ुमराही हैं l
पा-शिक़स्ता भी तिरी,
राहमें क़हलाया हूँ...ll
फ़ारिग़ बुख़ारी
8669अब क़िसी राहपें,ज़लते नहीं चाहतक़े चराग़...तू मिरी आख़िरी मंज़िल हैं,मिरा साथ न छोड़.......मज़हर इमाम
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थे बयाबान-ए-मोहब्बतमें,
ज़ो गिर्यां आह हम...
मंज़िल-ए-मक़्सूदक़ो पहुँचे,
तरीक़ी राह हम.......
ज़ुरअत क़लंदर बख़्श