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ग़ुज़रनेक़ो तो ग़ुज़रे ज़ा रहे हैं,
राह-ए-हस्तीसे...
मग़र हैं क़ारवाँ अपना,
न मीर-ए-क़ारवाँ अपना.......
सेहर इश्क़ाबादी
8927नए मक़ाम,नए मरहले, नई राहें ;नए इरादे,नया क़ारवाँ हैं, और हम हैं...!!!बिस्मिल सईदी
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सबक़ी अपनी राहें हैं,
सबक़ी अपनी सम्तें हैं...
क़ौन ऐसे आलममें,
क़ारवाँ बनाएग़ा.......
माहिर अब्दुल हई
8929ग़ुज़रे हैं क़ारवाँ,ज़ब शादाब मंज़िलोंसे,क़दमोंमें रह ग़ई हैं,राहें ज़रा ज़रा सी.......समद अंसारी
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ये सानेहा हैं क़ि,
राहें तो हैं नई लेक़िन...
क़िसी पें,
दस्तूर-ए-क़ारवाँ न रहा...
ऋषि पटियालवी