1 December 2025

10081 - 10085 रात मुसव्विर आँख थकन झाँक हुस्न-ए-ख़त मुतअज्जिब ख़त अलमारी आवाज़ सिलवट निगाह तस्वीर शायरी

 
10081
लगता हैं कई,
रातोंका जागा था मुसव्विर...
तस्वीरकी आँखोंसे,
थकन झाँक रही हैं...

10082
हुस्न-ए-ख़तसे मिरे,
इतना मुतअज्जिब क्यों हैं...
ख़त लिखा हैं,
अलमारीमें तस्वीरें रखता हूँ,
अब बचपन और बुढ़ापा एक हुए ll
ख़्तर होशियारपुरी

10083
जिसकी आवाज़में सिलवट हो,
निगाहोंमें शिकन...
ऐसी तस्वीरके टुकड़े,
नहीं जोड़े जाते......
                                  गुलज़ार

10084
तस्वीर मैने मांगी थी,
शोखी तो देखिए...
इक फूल उसने भेज दिया हैं,
गुलाबका...!
अन्दलीब शादानी

10085
क्या जुदाईका असर हैं,
कि शबे तन्हाई...
तेरी तस्वीरसे मिलती नहीं,
सूरत मेरी......

                                    दाग़ देहलवी

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