5 December 2025

10101 - 10105 दिल मोड़ मज़बूरी गरीबी हँसी रोटी हुकूमत फ़र्क़ अक्स-ए-मुकम्मल जुदा पर्दे फिजूलखर्ची तस्वीर शायरी


10101
वो रोए तो बहुत पर मुझसे मुँह मोड़कर रोए,
कोई मज़बूरी होगी जो दिल तोड़कर रोए,
मेरे सामने कर दिए मेरी तस्वीरके टुकड़े,
पता चला मेरे पीछे वो उन्हें जोड़कर रोए…

10102
गरीबी की क्या खूब,
हँसी उड़ाई जाती हैं,
एक रोटी देकर,
सौ तस्वीर खिंचाई जाती हैं…

10103
अगर हुकूमत तुम्हारी तस्वीर,
छाप दे नोटपर मेरी दोस्त...
तो देखना तुम कि लोग,
बिल्कुल फिजूलखर्ची नहीं करेंगे...
                                     रहमान फ़ारिस

10104
फ़र्क़ इतना हैं कि,
तू पर्देमें और मैं बे-हिजाब...
वर्ना मैं अक्स-ए-मुकम्मल हूँ,
तिरी तस्वीरका...
असद भोपाली

10105
तू कभी मुझसे मिला तस्वीर मेरी,
देख फिर कोई जुदा तस्वीर मेरी ll
                                                   दिलीप कुमार

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