1921
मैने खुदासे पुछा...
कि क्यूँ तू हर बार छीन लेता हैं...
“मेरी हर पसंद
”
वो हंसकर बोला,
“मुझेभी पसंद हैं, तेरी हर पसंद..!!"
1922
मतलबी दुनियाँके लोग खड़े हैं,
हाथोंमें पत्थर लेकर।
मैं कहाँ तक भागू,
शीशेका मुकद्दर लेकर।
1923
कुछ " कहानियाँ " अक्सर,
अधूरी रह जाती हैं.......!
कभी " पन्ने " कम प़ड़ जाते हैं,
तो कभी " स्याही
" सूख जाती हैं.......!
1924
वो दिन कभी मत दिखाना प्रभु,
के मुझे अपने आपपर गुरुर हो जाये,
रखना मुझे इस तरह सबके दिलोंमें,
के हर कोई दुवा देनेको मजबूर हो जा ये l
1925
साँसोंकी तरह...
तुम भी... शामिल हो मुझमें...
रहते भी साथ हो...
और... ठहरते भी नहीं.......!