3801
गीली पलकोंकी नमी,
और बेरहम याद, तुम
हो...
अनछुआ दिलका
कोना,
और रुहमें घुला एहसास...
सिर्फ
"तुम" हो.......!
3802
तेरी आँखोंमें एक,
शरारतसी हैं...
क्या लेना चाहते
हो,
दिल य़ा जान.......!
3803
दिलके तड़पनेका,
कुछ तो
सबब है आख़िर;
या दर्दने
करवट ली हैं,
या तुमने इधर
देखा हैं.......।
3804
अब क्यूँ तकलीफ होती
हैं,
तुम्हें
इस बेरुखीसे...
तुम्हीं
ने तो सिखाया
हैं कि,
दिल कैसे जलाते
हैं.......।
3805
साँस रुक जाए
मगर,
आँखें कभी
बंद न हो...
मौत आए भी
तो तुझे देखनेकी,
जिद खत्म
न हो.......!