5536
इक बार छुं
लुं तुमको,
की मुझे यकीन
आ जाये...
लोग कहते हैं,
मुझे सायेंसे मोहब्बत हैं...!
5537
जिस नजाकतसे लहरे,
पैरोंको
छूती हैं...
यकीन नही होता;
इन्होने
कभी कश्तियाँ,
डूबाई होगी.......
5538
अब यकीनका हाल,
ये बन चुका
हैं की...
डर घावोंसे नहीं,
लगावोंसे
लगने लगा हैं...!
5539
यकीन ही उठ
गया तो,
यह राह तू
छोड दे ग़ालिब...
हमारे यहाँ रिवाज़
हैं,
इंतज़ार क़यामत तक होता
हैं.......
5540
उसीका शहर,
वही खुदा और
उसके ही गवाह...
मुझे यकीन था,
की कुसूर मेरा ही
निकलेगा.......