27 September 2022

9191 - 9195 नमाज़ ख़ुदा शिक़ायत ग़ुनाह रहमत आबरू शराब दुश्मनी उल्फ़त तड़प वास्ते शायरी

 

9191
मस्ज़िदमें सर पटक़ता हैं,
तो ज़िसक़े वास्ते...
सो तो यहाँ हैं,
देख़ इधर ख़ुदा-शनास...
                   शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

9192
ख़ुदाक़े वास्ते,
मौक़ा दे शिक़ायतक़ा...
क़ि दोस्तीक़ी तरह,
दुश्मनी निभाया क़र...!
साक़ी फ़ारुक़ी

9193
ज़ोश--रहमतक़े वास्ते ज़ाहिद...
हैं ज़रासी ग़ुनाह-ग़ारी शर्त.......
                                  दाग़ देहलवी

9194
नमाज़ शुक्रक़ी पढ़ता हैं,
ज़ाम तोड़क़े शैख़...
वुज़ूक़े वास्ते लेता हैं,
आबरू--शराब.......
मुनीर शिक़ोहाबादी

9195
ख़ाक़से हैं ख़ाक़क़ो उल्फ़त
तड़पता हूँ अनीस ;
क़र्बलाक़े वास्ते मैं,
क़र्बला मेरे लिए ll
                         मीर अनीस

26 September 2022

9186 - 9190 बुत पत्थर ख़ुदा नमाज़ तोहफ़ा बात हरम दुनिया वास्ते शायरी


9186
बुत बनाने पूज़ने,
फ़िर तोड़नेक़े वास्ते...
ख़ुद-परस्तीक़ो,
नया हर रोज़ पत्थर चाहिए...!
                          वहीद अख़्तर

9187
आरज़ू इक़ बुतक़ी,
लेक़र ज़ाते हैं क़ाबेक़ो हम...
तुर्फ़ा तोहफ़ा पास हैं,
अहल--हरमक़े वास्ते.......
आशिक़ अक़बराबादी

9188
हक़ बात तो ये हैं,
क़ि उसी बुतक़े वास्ते ;
ज़ाहिद क़ोई हुआ,
तो क़ोई बरहमन हुआ ll
                 निज़ाम रामपुरी

9189
क़ुछ तुम्हें तर्स--ख़ुदा भी हैं,
ख़ुदाक़ी वास्ते l
ले चलो मुझक़ो मुसलमानो,
उसी क़ाफ़िरक़े पास ll
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

9190
दुनियाक़ा माल,
मुफ़्तमें चख़नेक़े वास्ते ;
हाथ आया ख़ूब,
शैख़क़ो हीला नमाज़क़ा...
               मिर्ज़ा मासिता बेग़ मुंतही

25 September 2022

9181 - 9185 ग़र्मी बहिश्त ख़िज़ाँ सहारा रहग़ुज़ार चमन उज़ाला आँख़ शिक़स्ता वास्ते शायरी

 

9181
ग़र्मीमें तेरे,
क़ूचा-नशीनोंक़े वास्ते...
पंख़े हैं क़ुदसियोंक़े,
परोंक़े बहिश्तमें.......!
               मुनीर शिक़ोहाबादी

9182
हवाक़े ख़ेलमें,
शिरक़तक़े वास्ते मुझक़ो...
ख़िज़ाँने शाख़से फेंक़ा हैं,
रहग़ुज़ारक़े बीच.......
एज़ाज़ ग़ुल

9183
साहिलपें क़ैद,
लाखों सफ़ीनोंक़े वास्ते...
मेरी शिक़स्ता नाव हैं,
तूफ़ाँ लिए हुए.......
                     सालिक़ लख़नवी

9184
ज़ानेक़ो ज़ाए फ़स्ल--ग़ुल,
आनेक़ो आए हर बरस...
हम ग़म-ज़दोंक़े वास्ते,
जैसे चमन वैसे क़फ़स.......
नूह नारवी

9185
हर सहारा,
बेअमलक़े वास्ते बेक़ार हैं l
आँख़ ही खोले ज़ब क़ोई,
उज़ाला क़्या क़रे...?
                             हफ़ीज़ मेरठी

9176 - 9180 आशिक़ आँख़ें ख़ुदा फ़िक्र राहत साहिल ग़हराई वास्ते शायरी

 

9176
आह क़रता हूँ तो,
आती हैं पलटक़र ये सदा...
आशिक़ोंक़े वास्ते,
बाब--असर ख़ुलता नहीं...
                         सेहर इश्क़ाबादी

9177
इक़ दमक़े वास्ते,
क़िया क़्या क़्या रज़ा ;
देख़ा छुपाया,
तोड़ा बनाया क़हा सुना ll
रज़ा अज़ीमाबादी

9178
आँख़ें ख़ुदाने बख़्शी हैं,
रोनेक़े वास्ते...
दो क़श्तियाँ मिली हैं,
डुबोनेक़े वास्ते.......
                मुनीर शिक़ोहाबादी

9179
माँग़ो समुंदरोंसे,
साहिलक़ी भीक़ तुम ;
हाँ फ़िक्र फ़नक़े वास्ते,
ग़हराई माँग़ लो ll
हसन नज़्मी सिक़न्दरपुरी

9180
रंज़ अलमक़ा,
लुत्फ़ उठानेक़े वास्ते...
राहतसे भी निबाह,
क़िए ज़ा रहा हूँ मैं.......
             ज़ग़दीश सहाय सक्सेना

23 September 2022

9171 - 9175 अज़नबी महफ़िल मोहब्बत फ़ुर्क़त शराब पराए वास्ते शायरी

 

9171
उस अज़नबीसे,
हाथ मिलानेक़े वास्ते...
महफ़िलमें सबसे,
हाथ मिलाना पड़ा मुझे.......
                        हसन अब्बासी

9172
उस अज़नबीसे,
वास्ता ज़रूर था क़ोई...
वो ज़ब क़भी मिला,
तो बस मिरा लग़ा मुझे...
हिलाल फ़रीद

9173
दूसरोंक़े वास्ते,
ज़ीते रहें मरते रहें ;
ख़ूब-सीरत लोग़ थे,
राज़--मोहब्बत पा ग़ए ll
             हयात रिज़वी अमरोहवी

9174
रो इतना पराए वास्ते,
दीदा--ग़िर्यां...
क़िसीक़ा क़ुछ नहीं ज़ाता,
तिरी बीनाई ज़ाती हैं.......
मुज़्तर ख़ैराबादी

9175
तेरी फ़ुर्क़तमें,
शराब--ऐशक़ा तोड़ा हुआ l
ज़ाम--मय,
दस्त--सुबूक़े वास्ते फोड़ा हुआ ll
                               मुनीर शिक़ोहाबादी

22 September 2022

9166 - 9170 लहू आग़ रात आँख़ें ख़्वाब शख़्स बुराई हासिल वास्ते शायरी

 

9166
रातोंक़ो ज़ाग़ते हैं,
इसी वास्ते क़ि ख़्वाब...
देख़ेग़ा बंद आँख़ें तो,
फ़िर लौट ज़ाएग़ा.......
                   अहमद शहरयार

9167
अब क़िसी,
औरक़े वास्ते हीं सहीं...
पर अदाए उनक़ी,
आज़ भी वैसी हीं हैं.......

9168
क़्या इसी वास्ते,
सींचा था लहूसे अपने...
ज़ब सँवर ज़ाए चम,
आग़ लग़ा दी ज़ाए.......
             अली अहमद ज़लीली

9169
क़ुर्बतें हदसे ग़ुज़र ज़ाएँ,
तो ग़म मिलते हैं...
हम इसी वास्ते,
हर शख़्ससे क़म मिलते हैं...

9170
बुराई या भलाई ग़ो हैं,
अपने वास्ते लेक़िन...
क़िसीक़ो क़्यूँ क़हें हम बद,
क़ि बद-ग़ोईसे क़्या हासिल.......
                          बहादुर शाह ज़फ़र

21 September 2022

9161 - 9165 सहरा धूप बुत ख़ुदा शर्त घर दर बात वास्ते शायरी

 

9161
क़िसने सहरामें,
मिरे वास्ते रक्ख़ी हैं ये छाँव...
धूप रोक़े हैं,
मिरा चाहने वाला क़ैसा...?

9162
बुत समझते थे,
ज़िसक़ो सारे लोग़...
वो मिरे वास्ते,
ख़ुदासा था.......!
सलमान अख़्तर

9163
तुम्हारे वास्ते सब क़ुछ हैं,
मेरे बंदा-नवाज़...
मग़र ये शर्त क़ि,
पहले पसंद आओ मुझे.......
                            महबूब ख़िज़ां

9164
तुम्हें भी मुझमें शायद,
वो पहली बात मिले...
ख़ुद अपने वास्ते,
अब क़ोई दूसरा हूँ मैं.......!
आज़ाद ग़ुलाटी

9165
बने हुए हैं,
अज़ाएब-घरोंक़ी ज़ीनत हम l
पर अपने वास्ते अपना ही,
दर नहीं ख़ुलता.......ll
                            फ़ानी ज़ोधपूरी

20 September 2022

9156 - 9160 ज़मीं क़ैद ज़बाँ मेहरबाँ खंडर सुपुर्दग़ी ख़ुश लफ़्ज़ वास्ते शायरी

 

9156
ये सब माह--अंज़ुम,
मिरे वास्ते हैं l
मग़र इस ज़मींपर,
मैं क़ैद--ज़हाँ हूँ ll
                     राग़िब देहलवी

9157
ये दलील--ख़ुश-दिली हैं,
मिरे वास्ते नहीं हैं...
वो दहन क़ि हैं शग़ुफ़्ता,
वो ज़बीं क़ि हैं क़ुशादा.......
मोहम्मद दीन तासीर

9158
वहीं लफ़्ज़ हैं,
दुर्र--बे-बहा मिरे वास्ते ;
ज़िन्हें छू ग़ई हो,
तिरी ज़बाँ मिरे मेहरबाँ ll
                              बुशरा हाश्मी

9159
सुपुर्दग़ीमें भी इक़,
रम्ज़--ख़ुद-निग़ह-दारी...
वो मेरे दिलसे,
मिरे वास्ते नहीं ग़ुज़रे.......
मज़ीद अमज़द शेर

9160
मिरे वास्ते,
ज़ाने क़्या लाएग़ी...!
ग़ई हैं हवा,
इक़ खंडरक़ी तरफ़.......!!!
                   राजेन्द्र मनचंदा बानी

9151 - 9155 मक़ान दिल रौशन आईना ख़ातिर वास्ते शायरी

 

9151
रुवाक़--चशममें मत रह क़ि,
हैं मक़ान--नुज़ूल...
तिरे तो वास्ते ये,
क़स्र हैं बना दिलक़ा.......
                                    शाह नसीर

9152
ये और बात क़ि,
रस्ते भी हो ग़ए रौशन !
दिए तो हमने,
तिरे वास्ते ज़लाए थे !!!
निसार राही

9153
आईना ख़ुद भी,
सँवरता था हमारी ख़ातिर...
हम तिरे वास्ते,
तय्यार हुआ क़रते थे.......!
                            सलीम क़ौसर

9154
ग़म--दुनिया,
तुझे क़्या इल्म तेरे वास्ते...
क़िन बहानोंसे,
तबीअत राहपर लाई ग़ई.......
साहिर लुधियानवी

9155
उड़ाई ख़ाक़ ज़िस सहरामें,
तेरे वास्ते मैने ;
थक़ा-माँदा मिला,
इन मंज़िलोंमें आसमाँ मुझक़ो ll
                               नज़्म तबातबाई

18 September 2022

9146 - 9150 ख़ुदा सनम ज़िंदग़ी ज़ीस्त उम्र दर्द ग़ुनाह मुज़रिम इश्क़ उल्फ़त वास्ते शायरी

 

9146
ख़ुदाक़े वास्ते ज़ाहिद,
उठा पर्दा क़ाबेक़ा...
क़हीं ऐसा हो,
याँ भी वहीं क़ाफ़िर-सनम निक़ले...
                                 बहादुर शाह ज़फ़र

9147
पालले इक़ रोग़,
नादाँ ज़िंदग़ीक़े वास्ते...
सिर्फ़ सेहतक़े सहारे,
उम्र तो क़टती नहीं.......!

9148
दर्द--उल्फ़त,
ज़िंदग़ीक़े वास्ते इक़्सीर हैं l
ख़ाक़क़े पुतले इसी,
ज़ौहरसे इंसाँ हो ग़ए ll

9149
ज़ीस्तक़ा इक़,
ग़ुनाह क़र सक़े हम...
साँसक़े वास्ते भी,
मर सक़े हम.......
ख़ुमार क़ुरैशी

9150
अब मुज़रिमान--इश्क़से,
बाक़ी हूँ एक़ मैं l
मौत रहने दे,
मुझे इबरतक़े वास्ते ll
                         रियाज़ ख़ैराबादी

16 September 2022

9141 - 9145 क़ातिल क़िस्से मक़ाँ ज़ालिम ज़ुदा ख़ुदा ख़्याल वास्ते शायरी

 

9141
ज़ालिम ख़ुदाक़े वास्ते,
बैठा तो रह ज़रा...
हाथ अपनेक़ो क़र तू,
ज़ुदा मेरे हाथसे.......
                 मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

9142
ख़ुदाक़े वास्ते,
इसक़ो टोक़ो...
यहीं इक़ शहरमें,
क़ातिल रहा हैं.......!
मज़हर मिर्ज़ा ज़ान--ज़ानाँ

9143
मोमिन ख़ुदाक़े वास्ते,
ऐसा मक़ाँ छोड़...
दोज़ख़में डाल ख़ुल्दक़ो,
क़ू--बुताँ छोड़.......
                   मोमिन ख़ाँ मोमिन

9144
माज़िद ख़ुदाक़े वास्ते,
क़ुछ देर क़े लिए...
रो लेने दे अक़ेला मुझे,
अपने हालपर.......
हुसैन माज़िद

9145
दिलोंमें ग़ब्र--मुसलमाँ,
ज़रा ख़्याल क़रें ;
ख़ुदाक़े वास्ते,
क़िस्सेक़ा इंफ़िसाल क़रें ll
             वज़ीर अली सबा लख़नवी

15 September 2022

9136 - 9140 रुस्वा लहर छल बदन सौदा नींद वास्ते शायरी

 

9136
अपने ज़ब्तक़ो,
रुस्वा क़रो सताक़े मुझे...
ख़ुदाक़े वास्ते,
देखो मुस्कुराक़े मुझे...!
                 बिस्मिल अज़ीमाबादी

9137
ख़ुदाक़े वास्ते,
उससे बोलो...
नशेक़ी लहरमें,
क़ुछ बक़ रहा हैं.......
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

9138
तुम्हारे देख़नेक़े वास्ते,
मरते हैं हम ख़ल सीं...
ख़ुदाक़े वास्ते हम सीं,
मिलो आक़र क़िसी छलसीं...
                     आबरू शाह मुबारक़

9139
सौदा ख़ुदाक़े वास्ते,
क़र क़िस्सा मुख़्तसर...
अपनी तो नींद उड़ ग़ई,
तेरे फ़सानेमें.......
मोहम्मद रफ़ी सौदा

9140
ख़ुदाक़े वास्ते ग़ुलक़ो,
मेरे हाथसे लो ;
मुझे बू आती हैं इसमें,
क़िसी बदनक़ी सी ...ll
             नज़ीर अक़बराबादी