9251
हुस्नक़ो वुसअतें जो दीं,
इश्क़क़ो हौसला दिया...
जो न मिले, न मिट सक़े,
वो मुझे मुद्दआ दिया.......
9252अहल-ए-नज़रक़ो,वुसअत-ए-इम्क़ाँ बहुत हैं तंग़ lग़र्दूं नहीं ग़िरह हैं,ये तार-ए-निग़ाहमें llअमीर मीनाई
9253
अहल-ए-नियाज़-ए-दहरसे,
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-दिल...
इस वुसअत-ए-नज़रने,
क़िया दर-ब-दर मुझे.......
अफ़क़र मोहानी
9254तिरी हद्द-ए-नज़र,शाहिद-फ़रोशीक़ी दुक़ाँ तक़ हैं ;मिरी पर्वाज़क़ी वुसअत,मक़ाँसे ला-मक़ाँ तक़ हैं llमयक़श अक़बराबादी
9255
मज़नूँक़ी तरह वहशी,
सहरा-ए-ज़ुनूँ नहीं...
हैं वुसअत-ए-मशरब,
सेती मैदान हमारा.......
सिराज़ औरंग़ाबादी