9361
सुख़न-वरीक़ा बहाना,
बनाता रहता हूँ...
तिरा फ़साना तुझीक़ो,
सुनाता रहता हूँ.......
असअद बदायुनी
9362हैं मश्क़-ए-सुख़न ज़ारी,चक़्क़ीक़ी मशक़्क़त भी...इक़ तुर्फ़ा तमाशा हैं,हसरतक़ी तबीअत भी...हसरत मोहानी
9363
अफ़्सोस बे-शुमार,
सुख़न-हा-ए-ग़ुफ़्तनी...
ख़ौफ़-ए-फ़साद-ए-ख़ल्क़़से,
नाग़ुफ़्ता रह ग़ए.......
आज़ाद अंसारी
9364यहीं लहज़ा था क़ि,मेआर-ए-सुख़न ठहरा था lअब इसी लहज़ा-ए-बे-बाक़से,ख़ौफ़ आता हैं llइफ़्तिख़ार आरिफ़
9365
वो साँप ज़िसने,
मुझे आज़तक़ डसा भी नहीं...
तमाम ज़हर सुख़नमें,
मिरे उसीक़ा हैं.......
नोमान शौक़