6 January 2018

2181 - 2185 दिल जिंदगी बिखर गुजर चाहत रस्ते महफ़िल खजाने ख़ूबसूरत फितरत मुकद्दर खुश नाराज शायरी


2181
चाँदकी महफ़िलमें अनजाने मिल गए,
हमने देखा तो सब जाने पहचाने मिल गए,
मैं बढता गया सच्चके रस्तेपर,
वहींपर मुझे सभ खजाने मिल गए |

2182
कौन कहता हैं,
सॅवारनेसे बढती हैं ख़ूबसूरती...
जब दिलमें चाहत हो,
तो चेहरे अपने आप निखर जाते हैं...!

2183
फितरतमें नहीं हैं,
किसीसे नाराज होना,
नाराज वो होते हैं,
जिनको अपने आपपर गुरुर होता हैं।

2184
इलयचीकी तरह हैं 
मुकद्दर अपना...
महेक उतनी बिखरी,
पिसे गये जितना . . . !

2185
जिंदगी गुजर गयी...
सबको खुश करनेमें ...!
जो खुश हुए वो अपने नहीं थे,
जो अपने थे वो कभी खुश नहीं थे...

5 January 2018

2176 - 2180 दिल रंग आसमान गझल कागज पतंग नजरे बात चाह समझ दिमाग नजर सबूत बेगुनाही कुसुर कैद शायरी


2176
ऐसा नहीं की सिर्फ आसमान ही,
अपने रंग बदलता हैं...
लिखू तुझपर गझल तो,
सफ़ेद कागज भी गुलाबी होता हैं ...!

2177
उनकी छतपर गये थे,
कटी पतंग लूटने...
कम्बख्तसे नजरे क्या मिली,
हाय...दिल लुटाकर आ गये.......

2178
हर बार मुकद्दरको कुसुरवार कहना,
अच्छी बात नहीं...
कभीकभी हम उन्हें भी माँग लेते हैं,
जो किसी औरके होते हैं..."

2179
तुमने समझा ही नहीं...
और, ना समझना चाहा,
हम चाहते ही क्या थे तुमसे...
“तुम्हारे सिवा.......”.

2180
कहाँसे लाएँ अपनी,
बेगुनाहीके पक्के सबूत...!
दिल, दिमाग, नजर...
सब कुछ तो तेरी कैदमें हैं...!

4 January 2018

2171 - 2175 दिल मोहब्बत याद वक़्त इज़ाज़त मामला फुर्सत महफ़िल लिफाफे लहजा शिकायत याद दर्द हुनर पनाह आदत महँगी शायरी


2171
इज़ाज़त हो तो लिफाफेमें रखकर,
कुछ वक़्त भेज दूं ;
सुना हैं कुछ लोगोंको फुर्सत नहीं हैं,
अपनोंको याद करनेकी ...।।

2172
लहजा शिकायतका था,
मगर. . . . . . .
सारी महफ़िल समझ गई,
मामला मोहब्बतका हैं...

2173
हम तो दर्द लेकर भी,
याद करते हैं,
और लोग दर्द देकर भी
भूल जाते हैं . . . !

2174
मैने दिलको भी सिखा दिया हैं,
हुनर हदमें रहनेका;
वरना हरपल ज़िद करता था,
तेरी पनाहमें रहनेकी. . .

2175
हँसते रहनेकी आदत भी,
कितनी महँगी पड़ी हमें...
छोड़ गई वो ये सोच कर कि...
हम दूर रहकर भी खुश हैं.....

3 January 2018

2166 - 2170 इज़ाज़त याद वक़्त फुर्सत जज्बात अल्फ़ाज़ एहसास जान जख्म तकदिर दुश्मन कातिल शौक बात शायरी


2166
यूँ तो तकदिरने,
गम नहीं दिये हमको...
क जख्म हैं जो,
हमने खुद खरीद लिया...

2167
जब जान प्यारी थी,
तो दुश्मन हजारों थे;
अब मरनेका शौक हुवा,
तो कातिल नहीं मिलते !!!

2168
जब मिले थोड़ी फुरसत,
तो अपने मनकी बात हमसे कह लेना..
बहुत खामोश रिश्ते कभी,
जिंदा नहीं रहते...!

2169
जो कह दिया, वो अल्फ़ाज़ थे।
जो कह न सके, वो जज्बात थे।
जो कहते कहते न कह पाये,
वो एहसास थे... वहीं ख़ास थे !!!

2170
इज़ाज़त हो तो लिफाफेमें रखकर,
कुछ वक़्त भेज दूं...
सुना हैं कुछ लोगोंको फुर्सत नहीं हैं,
अपनोंको याद करनेकी .......

2 January 2018

2161 - 2165 दिल प्यार जिंदगी ज़माना साज़िश बेवजह रौशनी शमा परवाना हुकुमत ज़रुरत कश्ती मजाक मौसम गलतफहमि शायरी


2161
बेवजह हैं...
तभी तो दोस्ती हैं,
वजह होती तो.....
साज़िश होती.......

2162
रौशनीके लिए दिया जलता हैं,
शमाके लिए परवाना जलता हैं,
कोई दोस्त न हो तो दिल जलता हैं,
और दोस्त आप जैसा हो जो ज़माना जलता हैं !

2163
दोस्ती इन्सानकी ज़रुरत हैं,
दिलोंपर दोस्तीकी हुकुमत हैं,
आपके प्यारकी वजहसे जिंदा हूँ,
वरना खुदाको भी हमारी ज़रुरत हैं !

2164
समुंदर ना हो तो कश्ती किस काम कीं,
मजाक ना हो तो मस्ती किस काम की,         
दोस्तोंके लिए तो कुर्बान हैं ये जिंदगी,
अगर दोस्त ही ना हो तो फिर ये जिंदगी किस कामकी...

2165
मौसम बहुत सर्द हैं.....
चल ए दोस्त ...
गलतफहमियोंको ,
आग लगाते हैं !

1 January 2018

2156 - 2160 ज़िंदगी मौत शिकायत मंजूर हाँसिल दर काबिल शक्स दुश्मनी मोहब्बत बर्बाद अधूरा लाज़मी शायरी


2156
लोगोंने कुछ दिया,
तो सुनाया भी बहुत कुछ !!
ऐ खुदा...
एक तेरा ही दर हैं,
जहां कभी ताना नहीं मिला

2157
"कौन पूरी तरह काबिल हैं...
कौन पूरी तरह पूरा हैं...
हर एक शक्स कहीं न कहीं...
किसी जगह थोड़ासा अधूरा हैं...

2158
लाज़मी नहीं हैं कि हर किसीको,
मौत ही छूकर निकले....
किसी किसीको छूकर,
ज़िंदगी भी निकल जाती हैं...

2159
शिकायत खुदसे भी हैं
और खुदासे भी,
जो मिलता हैं वो मंजूर नहीं
और जिसे चाहो वो हाँसिल नहीं !

2160
मेरा कुछ ना बिगाड़ सकोगे,
तुम मुझसे दुश्मनी करके,
मुझे बर्बाद करना चाहते हो तो,
मुझसे मोहब्बत कर लो...

2151 - 2155 इश्क दिल मुहबत साँस याद इंतजार महफिल तस्वीर नजर सलाम निगाहें चेहरे मर्जी राज बात खुशबु तसल्ली एहसास शायरी


2151
जब रातको आपकी याद आती हैं,
सितारोंमें आपकी तस्वीर नजर आती हैं,
खोजती हैं निगाहें उस चेहरेको...
यादमें जिसकी सुबह हो जाती हैं.......

2152
उनकी जब मर्जी होती हैं,
वो हमसे बात करते हैं......!
हमारा पागलपन तो देखिये.....!
हम पूरा दिन उनकी मर्जीका
इंतजार करते हैं.......!

2153
यूँ भी तो राज खुल जाऐगा,
अपनी मुहबतका एक दिन...!
महफिलमें हमें छोड़ कर,
सबको जो सलाम करते हो...!!!

2154
चुपकेसे आकर इस दिलमें उतर जाते हो;
साँसोंमें मेरी खुशबु बनके बिखर जाते हो;
कुछ यूँ चला हैं तेरे 'इश्क' का जादू;
सोते-जागते तुम ही तुम नज़र आते हो।

2155
दिलको तसल्ली हैं...
कि वो याद करते हैं
पर बात नहीं करेंगे तो...
एहसास कैसे होगा.......!

30 December 2017

2146 - 2150 दिल ज़िन्दगी बारिश बात याद खुदकुशी उम्मीद आईना जहर राजी खुशी आँसू असर कोशिश वक़्त शायरी


2146
बारिशमें चलनेसे
एक बात याद आई..!!
इंसान जितना संभलके कदम बारिशमें रखता हैं,
उतना संभलकर ज़िन्दगीमें रखे तो
गलतीकी गुन्जाई ही न हो...!

2147
शायरी खुदकुशीका धंधा हैं,
लाश अपनी हैं अपना ही कंधा हैं...
आईना बेचता फिरता हैं शायर,
उस शहरमें जो शहर अंधा हैं...

2148
जहरके असरदार होनेसे,
कुछ नहीं होता,
खुदा भी राजी होना चाहिए,
मौत देनेके लिये !!

2149
हजारो मिठाईयाँ चखी हैं जमानेंमें,
खुशीके आँसूसे मीठा कुछ भी नहीं

2150
कोशिश तो रोज़ करते हैं
के वक़्तसे समझौता करलें...
कम्बख़्त दिलके कोनेमें
छुपी उम्मीद मानती ही नहीं...

29 December 2017

2141 - 2145 मोहब्बत याद हालात परेशां तनहाई फरियाद आबाद तरस होठ मुलाकात अल्फ़ाज़ रात वकालत शायरी


2141
अपने हालातका,
खुद पता नहीं मुझको,
मैने औरोंसे सुना हैं की,
मैं परेशां हूँ आजकल. . .

2142
तनहाईमें फरियाद तो कर सकता हूँ,
वीरानेको आबाद कर सकता हूँ,
जब चाहूँ तुम्हे मिल नहीं सकता,
लेकिन जब चाहूँ तुम्हे याद कर सकता हूँ

2143
तरस गया हूँ अब तो ख़ुदा मैं...
उसे सुननेको।
एक बार उसको कह दो
होठ ही हिला दे.......

2144
ईद भी आ गयी,
तुम ना आये मुलाकातके लिये
हमने चाँद रोका भी था,
एक रातके लिये. . . !

2145
वो अल्फ़ाज़ ही क्या,
जो समझाने पड़े...
हमने मोहब्बत की थी,
कोई वकालत नहीं.......!

28 December 2017

2136 - 2140 दिल जिंदगी ख्वाब शिकायत मजबूर वादे यादें कदम पलक नजरें उम्र शायरी


2136
मजबूर नहीं करेंगे तुझे,
वादे निभानेंके लिए...
बस एक बार आ जा,
अपनी यादें वापस ले जानेके लिए.......।

2137
चलते-चलते मेरे कदम,
हमेशा यहीं सोचते हैं...
कि किस और जाऊँ,
तो तू मिल जाये.......

2138
उलझने क्या बताऊँ,
जिंदगीकी तुझे ...
तेरे ही गले लगकर ...
तेरी ही शिकायत करनी हैं.......

2139
पलकोंको कभी हमने भिगोए ही नहीं,
वो सोचते हैं की हम कभी रोये ही नहीं,
वो पूछते हैं कि ख्वाबोंमें किसे देखते हो ?
और हम हैं की उनकी यादोंमें सोए ही नहीं !

2140
नजरें मिलते ही दिल लगाया नहीं जाता,
हर मिलने वालेको अपना बनाया नहीं जाता,
और जो दिलमें बस जाये एकबार,
उन्हें उम्रभर भुलाया नहीं जाता.......

27 December 2017

2131 - 2135 प्यार इश्क मोहब्बत शिकवे शिकायत उलझ मुकदमा रिश्ते सरहद दीवार पराये शायरी


2131
शिकवे शिकायतमें,
उलझकर रह गई मोहब्बत अपनी,
समझ नहीं आता इश्क किया था,
या कोई मुकदमा लड रहे थे.......

2132
" टूटकर बिखर जाते हैं...
मिट्टीकी दीवारकी तरह वो;
लोग जो खुदसे ज्यादा...
किसी औरसे मोहब्बत किया करते हैं  "

2133
"इश्क करना हैं किसीसे तो,
बेहद कीजिए,
हदें तो सरहदोंकी होती हैं,
दिलोंकी नहीं ।

2134
सख़्त हाथोंसे भी,
छूट जाती हैं कभी उंगलियाँ...
रिश्ते ज़ोरसे नहीं,
प्यारसे थामे जाते हैं...!

2135
सब कुछ बदला बदला था,
जब बरसो बाद मिले;
हाथ भी न थाम सके वो,
इतने परायेसे लगे . . . ।

26 December 2017

2126 - 2130 दिल जिंदगी दुनियाँ काम खूबसूरत हसीन मुक़द्दर बाज़ार फिक्र मंजिल कदम नसीब दस्तक कतरा वक्त चोट शायरी हैं हीं


2126
किसीके काम ना आए,
तो आदमी क्या हैं....!!
जो अपनी ही फिक्रमें गुजरे,
वो जिंदगी क्या हैं.......!!!

2127
बहुत मिलेंगें हसीन चेहरे ...
इस दुनियाँके बाज़ारमें ;
वो मुक़द्दरसे मिलता हैं ...
जिसका 'दिल' खूबसूरत होता हैं ।

2128
मंजिल मेरे कदमोंसे,
अभी दूर बहुत हैं...
मगर तसल्ली ये हैं कि,
कदम मेरे साथ हैं...!!!

2129
आज फिर दस्तक हुयी हैं
मेरे दरवाजेपर,
देखूँ तो सही नसीब हैं
या कोई मतलबी.......

2130
कतरा कतरा ये वक्त,
पिघलता चला गया...
लगी चोटपें चोट मग़र,
मैं सम्भलता चला गया.......

2121 - 2125 दुनियाँ मोहब्बत हमसफर नसीब इल्ज़ाम दीवार तस्वीर खत्म आँसू हार जीत जागीर समझ तलाश शायरी


2121
किस मुँहसे इल्ज़ाम लगाएं,
बारिशकी बूँदोंपर,
हमने ख़ुद तस्वीर बनाई थी,
मिट्टीकी दीवारोंपर !

2122
सब कुछ लुटा दिया,
उनकी मोहब्बतमें...
कमबख्त आँसू ही ऐसे हैं,
जो खत्म नहीं होते.......

2123
हमसे खेलती रही दुनियाँ,
ताशके पत्तोकी तरह,
जिसने जीता उसने भी फेका...
जिसने हारा उसने भी फेका...

2124
छत कहा थी नसीबमें,
फुटपाथको जागीर समझ बैठे...
गीले चावलमें शक्कर क्या गिरी,
बच्चे खीर समझ बैठे. . . . . . .

2125
तलाशमें बीत गए,
न जाने कितने साल... साहेब,
अब समझे... खुदसे बड़ा,
कोई हमसफर नहीं होता...!