3 January 2018

2166 - 2170 इज़ाज़त याद वक़्त फुर्सत जज्बात अल्फ़ाज़ एहसास जान जख्म तकदिर दुश्मन कातिल शौक बात शायरी


2166
यूँ तो तकदिरने,
गम नहीं दिये हमको...
क जख्म हैं जो,
हमने खुद खरीद लिया...

2167
जब जान प्यारी थी,
तो दुश्मन हजारों थे;
अब मरनेका शौक हुवा,
तो कातिल नहीं मिलते !!!

2168
जब मिले थोड़ी फुरसत,
तो अपने मनकी बात हमसे कह लेना..
बहुत खामोश रिश्ते कभी,
जिंदा नहीं रहते...!

2169
जो कह दिया, वो अल्फ़ाज़ थे।
जो कह न सके, वो जज्बात थे।
जो कहते कहते न कह पाये,
वो एहसास थे... वहीं ख़ास थे !!!

2170
इज़ाज़त हो तो लिफाफेमें रखकर,
कुछ वक़्त भेज दूं...
सुना हैं कुछ लोगोंको फुर्सत नहीं हैं,
अपनोंको याद करनेकी .......

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