5 January 2018

2176 - 2180 दिल रंग आसमान गझल कागज पतंग नजरे बात चाह समझ दिमाग नजर सबूत बेगुनाही कुसुर कैद शायरी


2176
ऐसा नहीं की सिर्फ आसमान ही,
अपने रंग बदलता हैं...
लिखू तुझपर गझल तो,
सफ़ेद कागज भी गुलाबी होता हैं ...!

2177
उनकी छतपर गये थे,
कटी पतंग लूटने...
कम्बख्तसे नजरे क्या मिली,
हाय...दिल लुटाकर आ गये.......

2178
हर बार मुकद्दरको कुसुरवार कहना,
अच्छी बात नहीं...
कभीकभी हम उन्हें भी माँग लेते हैं,
जो किसी औरके होते हैं..."

2179
तुमने समझा ही नहीं...
और, ना समझना चाहा,
हम चाहते ही क्या थे तुमसे...
“तुम्हारे सिवा.......”.

2180
कहाँसे लाएँ अपनी,
बेगुनाहीके पक्के सबूत...!
दिल, दिमाग, नजर...
सब कुछ तो तेरी कैदमें हैं...!

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