10 January 2018

2201 - 2205 दिल मुहोब्बत सँभाल आँख जलन तलाश ख्वाब तारीफ़ अलफ़ाज वजह शिक़वे रंगत शायरी


2201
अब तो इन आँखोंसे भी,
जलन होती हैं मुझे...
खुली हो तो तलाश उनकी,
बंद हो तो ख्वाब उनके . . . !

2202
सभी तारीफ़ करते हैं,
मेरे अलफ़ाजोंकी,
कोई क्यूँ नहीं पूछता,
इसकी वजह क्या हैं...

2203
सँभालकर रखिए,
जरा अपने दिलको
जनाब, ...
ये टूटते ही नहीं
चोरी भी बहुत
होते हैं . . .

2204
तुमसे शिक़वे तो
बहुत हैं लेकिन
दिलपें कब्ज़ा अभी
मुहोब्बतका हैं !

2205
रंगत लाई हैं...
शायरोंकी महफ़िल...
दर्द भी कितना...
महकता हैं यहाँ...

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