6 January 2018

2181 - 2185 दिल जिंदगी बिखर गुजर चाहत रस्ते महफ़िल खजाने ख़ूबसूरत फितरत मुकद्दर खुश नाराज शायरी


2181
चाँदकी महफ़िलमें अनजाने मिल गए,
हमने देखा तो सब जाने पहचाने मिल गए,
मैं बढता गया सच्चके रस्तेपर,
वहींपर मुझे सभ खजाने मिल गए |

2182
कौन कहता हैं,
सॅवारनेसे बढती हैं ख़ूबसूरती...
जब दिलमें चाहत हो,
तो चेहरे अपने आप निखर जाते हैं...!

2183
फितरतमें नहीं हैं,
किसीसे नाराज होना,
नाराज वो होते हैं,
जिनको अपने आपपर गुरुर होता हैं।

2184
इलयचीकी तरह हैं 
मुकद्दर अपना...
महेक उतनी बिखरी,
पिसे गये जितना . . . !

2185
जिंदगी गुजर गयी...
सबको खुश करनेमें ...!
जो खुश हुए वो अपने नहीं थे,
जो अपने थे वो कभी खुश नहीं थे...

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