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दिल-ओ-दिमाग़क़ी राहें हैं,
मुख़्तलिफ़ क़बसे...
तुम्हारे क़ुर्बसे शायद,
ये फ़ासला बदले........
दिलनवाज़ सिद्दीक़ी
8627शरारे सोज़-ए-पैहमक़े,भड़क़ ज़ाएँ तो अच्छा हैं ;मोहब्बतक़ी हसीं राहें,चमक़ ज़ाएँ तो अच्छा हैं llज़ेब बरैलवी
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हम तिरी राहमें,
ज़ूँ नक़्श-ए-क़दम बैठे हैं...
तू तग़ाफ़ुल क़िए,
ऐ यार चला ज़ाता हैं...
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
8629दिलमें क़िसीक़े राह,क़िए ज़ा रहा हूँ मैं...!क़ितना हसीं ग़ुनाह,क़िए ज़ा रहा हूँ मैं...!!!ज़िग़र मुरादाबादी
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क़ूचा-ए-ज़ुल्फ़में फ़िरता हूँ,
भटक़ता क़बक़ा...
शब-ए-तारीक़ हैं और,
मिलती नहीं राह क़हीं...
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी