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राहें बाँहें तो,
दरीचे आँख़ें,
ये तिरा शहर भी,
तुझ ज़ैसा था...
महमूद शाम
8637वो राहें ज़िनक़ो,सूनाक़र ग़ए वो...उन्हींपर आज़तक़,मेरी नज़र हैं.......मुमताज़ मीरज़ा
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धुआँ धुआँ हैं ज़हाँपर,
ख़यालक़ी राहें...
मिसाल-ए-ग़र्द उड़ाया,
तिरी हवाने मुझे.......
सलीम क़ाशी
8639ज़म ग़ए राहमें,हम नक़्श-ए-क़दमक़ी सूरत...नक़्श-ए-पा राह दिख़ाते हैं,क़ि वो आते हैं.......!!!पंडित ज़वाहर नाथ साक़ी
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क़भी इस राहसे,
ग़ुज़रे वो शायद...
ग़लीक़े मोड़पर,
तन्हा ख़ड़ा हूँ.......
ज़ुनैद हज़ीं लारी