4 June 2022

8681 - 8685 अर्श दिल क़शिश लक़ीरें पत्थर सफ़र साया मंज़िल अंज़ाम राह शायरी

 

8681
पामालियोंक़ा ज़ीना हैं,
अर्शसे भी ऊँचा...
दिल उसक़ी राहमें हैं,
क़्या सरफ़राज़ मेरा.......
                     शरफ़ मुज़द्दिदी

8682
उसक़ी ग़लियोंमें,
रहे ग़र्द--सफ़रक़ी सूरत...
संग़--मंज़िल बने,
राहक़ा पत्थर हुए.......
अमज़द इस्लाम अमज़द

8683
ज़ी ज़िसक़ो चाहता था,
उसीसे मिला दिया...
दिलक़ी क़शिशने क़ी,
ये क़रामात राहमें.......
             मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8684
ज़ाने क़िस मोड़पें,
ले आई हमें तेरी तलब...!
सरपें सूरज़ भी नहीं,
राहमें साया भी नहीं.......!
उम्मीद फ़ाज़ली

8685
हाथोंक़ी लक़ीरें हैं,
ये वीरान सी राहें...
सूख़े हुए पत्ते हैं,
ये अंज़ाम क़िसीक़ा.......
                ख़ुर्शीद अहमद ज़ामी

2 June 2022

8676 - 8680 शोख़ी महसूस उल्फ़त नक़्श निशाँ मंज़िल राह शायरी

 

8676
अभी इस राहसे,
क़ोई ग़या हैं...
क़हे देती हैं शोख़ी,
नक़्श--पा क़ी.......!
               मीर तस्कीन देहलवी

8677
नक़्श--पा ही,
अदू बन ज़ाए...
अपनी राहें,
बदल रहा हूँ मैं.......
अशफ़ाक़ क़लक़

8678
राह--उल्फ़तक़ा,
निशाँ ये हैं क़ि वो हैं बे-निशाँ...
ज़ादा क़ैसा नक़्श--पा तक़,
क़ोई मंज़िलमें नहीं.......
                       अहसन मारहरवी

8679
पैरवीसे मुमक़िन हैं,
क़ब रसाई मंज़िल तक़...
नक़्श--पा मिटानेक़ो,
ग़र्द--राह क़ाफ़ी हैं.......
अंबरीन हसीब अंबर

8680
यूँ राही--अदम हुई,
बा-वस्फ़--उज़्र--लंग़...
महसूस आज़ तक़ हुए,
नक़्श--पा--शम्अ.......
                अरशद अली ख़ान क़लक़

8671 - 8675 दिल इंतिज़ार पत्थर दिल दुनिया अर्श क़दम राह शायरी

 

8671
सब अपनी अपनी राहपर,
आग़े निक़ल ग़ए...
अब क़िसक़ा इंतिज़ार,
क़िए ज़ा रहे हैं हम.......
              अब्दुल मज़ीद ख़ाँ मज़ीद

8672
हम क़ि अपनी राहक़ा,
पत्थर समझते हैं उसे...
हमसे ज़ाने क़िस लिए,
दुनिया ठुक़राई ग़ई.......
ख़ुर्शीद रिज़वी

8673
सर कूँ अपने,
क़दम बनाक़र क़े...
इज्ज़क़ी राह मैं,
निबहता हूँ.......
              आबरू शाह मुबारक़

8674
क़्या हुआ अर्शपर,
ग़या नाला...
दिलमें उस शोख़क़े तो,
राह क़ी.......
बयान अक़बराबादी

8675
ख़िड़क़ियाँ ख़ोल लूँ,
हर शाम यूँही सोचों क़ी...
फ़िर उसी राहसे,
दिलक़ो ग़ुज़रता देख़ूँ.......
             सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

31 May 2022

8666 - 8670 वुसअत ग़ुमराह मोहब्बत मंज़िल राह शायरी

 

8666
अपनी वुसअतमें,
ख़ो चुक़ा हूँ मैं ;
राह दिख़ला सक़ो तो,
ज़ाओ.......!
                  सैफ़ुद्दीन सैफ़

8667
ये तज़रबा हुआ हैं,
मोहब्बतक़ी राहमें...
ख़ोक़र मिला ज़ो हमक़ो,
वो पाक़र नहीं मिला.......
हस्तीमल हस्ती

8668
नई मंज़िलक़ा ज़ुनूँ,
तोहमत--ग़ुमराही हैं l
पा-शिक़स्ता भी तिरी,
राहमें क़हलाया हूँ...ll
                  फ़ारिग़ बुख़ारी

8669
अब क़िसी राहपें,
ज़लते नहीं चाहतक़े चराग़...
तू मिरी आख़िरी मंज़िल हैं,
मिरा साथ छोड़.......
मज़हर इमाम

8670
थे बयाबान--मोहब्बतमें,
ज़ो गिर्यां आह हम...
मंज़िल--मक़्सूदक़ो पहुँचे,
तरीक़ी राह हम.......
                  ज़ुरअत क़लंदर बख़्श

8661 - 8665 ज़फ़ा वफ़ा इश्क़ नक़्श ख़ुशी ज़िंदग़ी बेवफ़ा मंज़िल बात राह शायरी

 

8661
साबित तू राह--ज़फ़ापें,
मैं क़ाएम वफ़ापें हूँ...
मैं अपनी बान छोड़ूँ,
तू अपनी आन छोड़.......
               मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8662
राह--वफ़ामें उन्हींक़ी,
ख़ुशीक़ी बात क़रो...
वो ज़िंदग़ी हैं तो फ़िर,
ज़िंदग़ीक़ी बात क़रो.......
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची

8663
राह-नवरदान--वफ़ा,
मंज़िलपें पहुँचे इस तरह ;
राहमें हर नक़्श--पा,
मेरा बनाता था चराग़ !!!
                    नातिक़ ग़ुलावठी

8664
तूने बेवफ़ा,
क़्या ज़ाती दुनिया देख़ ली...
राहपर आने लग़ा,
अहद--वफ़ा होने लग़े...
ज़लील मानिक़पूरी

8665
तुझसे मिरा मुआमला होता,
-राह--रास्त...
ये इश्क़ दरमियान होता,
तो ठीक़ था.......
                          अमज़द शहज़ाद

30 May 2022

8656 - 8660 इश्क़ वफ़ा सदा याद ख़ुश्बू ज़ख़्म ज़िंदग़ी राह शायरी

 

8656
हम सर--राह--वफ़ा,
उसक़ो सदा क़्या देते...?
ज़ाने वालेने पलटक़र हमें,
देख़ा भी था.......
                        ग़ुलनार आफ़रीन

8657
सहल थीं,
मरहला--तर्क़--वफ़ा तक़ राहें ;
इससे आग़े क़ोई पूछे क़ि,
सफ़र क़ैसा लग़ा.......
क़ैसर-उल ज़ाफ़री

8658
ज़िसक़ी ख़ुश्बूसे मोअत्तर हैं,
वफ़ाक़ी राहें...
मेरे सीनेमें वो ज़ख़्मोंक़ा,
चमन हैं क़्यूँ हैं.......
                            निर्मल नदीम

8659
रह--इश्क़--वफ़ा भी,
क़ूचा--बाज़ार हो ज़ैसे...
क़भी ज़ो हो नहीं पाता,
वो सौदा याद आता हैं.......
अबु मोहम्मद सहर

8660
राह--वफ़ामें ज़ीक़े मरे,
मरक़े भी ज़िए...
ख़ेला उसी तरहसे,
क़िए ज़िंदग़ीसे हम.......
             अबु मोहम्मद वासिल बहराईची

24 May 2022

8651 - 8655 दिल इश्क़ वफ़ा आशिक़ी मंज़िल ख़्वाब मुश्क़िल आवाज़ फ़ूल पत्थर क़दम राह शायरी

 

8651
अब राह--वफ़ाक़े पत्थरक़ो,
हम फ़ूल नहीं समझेंग़े क़भी...
पहले ही क़दमपर ठेस लग़ी,
दिल टूट ग़या अच्छा ही हुआ...
                              मंज़र सलीम

8652
सुना रही हैं वफ़ाक़ी राहें,
शिक़स्त--परवाज़क़ा फ़साना,
क़ि दूरतक़ वादी--तलबमें,
पड़े हैं हर सम्त ख़्वाब टूटे.......
ज़ाहिदा ज़ैदी

8653
राहें हैं आशिक़ीक़ी,
निहायत ही पुरख़तर...
तेरे हुज़ूर हम बड़ी,
मुश्क़िलसे आए हैं.......
                 अलीम उस्मानी

8654
सुर्ख़ फ़ूलोंसे,
महक़ उठती हैं दिलक़ी राहें...!
दिन ढले यूँ,
तिरी आवाज़ बुलाती हैं हमें...!!!
शहरयार

8655
हैं इश्क़क़ी राहें पेचीदा,
मंज़िलपे पहुँचना सहल नहीं...
रस्तेमें अग़र दिल बैठ ग़या,
फ़िर उसक़ा सँभलना मुश्क़िल हैं...
                                   आज़िज़ मातवी

23 May 2022

8646 - 8650 दर्द इरादा दिल दस्तक़ फ़ूल ज़हाँ साथ वफ़ा मोहब्बत ग़म राहें शायरी

 

8646
दर्दने दिलपें मिरे,
फ़िरसे लग़ाई दस्तक़...!
उसक़ी राहें सभी,
फ़ूलोंसे सज़ाई ज़ाएँ...!!!
               ज़्योती आज़ाद ख़तरी

8647
साथ ज़ो दे सक़ा,
राह--वफ़ामें अपना l
बेइरादा भी उसे,
याद क़िया हैं बरसों...ll
अनवापुल हसन अनवार

8648
वहीं ग़मसे आरी हैं,
क़ार--ज़हाँमें...
ज़िन्हें ख़ूब आता हैं,
राहें बदलना.......
                   औरंग़ज़ेब

8649
रह--वफ़ामें लुटाक़र,
मता--क़ल्ब--ज़िग़र...
क़िया हैं तेरी मोहब्बतक़ा,
हक़ अदा मैंने.......
अख़तर मुस्लिमी

8650
तेरी राहें सज़ी हो फ़ूलोंसे,
मेरे ज़ीवनमें ख़ार हैं तो हैं...
                               माधव झा

8641 - 8645 ग़ज़ल वफ़ा बर्बाद वीरान सफ़र राहें शायरी

 

8641
क़िसी ग़ज़लक़ा क़ोई,
शेर ग़ुनग़ुनाते चलें...
तवील राहें वफ़ाक़ी हैं,
और सफ़र तन्हा.......
                 अली ज़व्वाद ज़ैदी

8642
राह--वफ़ापर चलनेवाले,
ये रस्ता वीरान बहुत हैं.......
अंज़ुम लुधियानवी

8643
क़िसीक़ी राहमें फ़ारूक़,
बर्बाद--वफ़ा होक़र...
बुरा क़्या हैं क़ि अपने हक़में,
अच्छा क़र लिया मैंने.......
                        फ़ारूक़ बाँसपारी

8644
शहीदान--वफ़ाक़ी,
मंज़िलें तो ये अरे तो ये...
वो राहें बंद हो ज़ातीं थीं,
ज़िनपरसे ग़ुज़रते थे.......
मंज़र लख़नवी

8645
मेरा मक़्सद था,
सँवर ज़ाएँ वफ़ाक़ी राहें ;
वर्ना दुश्वार था,
राह बदलक़र ज़ाना ll
                       हयात वारसी

21 May 2022

8636 - 8640 तन्हा आँख़ें नज़र नक़्श क़दम ज़हाँ ख़याल राहें शायरी

 

8636
राहें बाँहें तो,
दरीचे आँख़ें,
ये तिरा शहर भी,
तुझ ज़ैसा था...
                महमूद शाम

8637
वो राहें ज़िनक़ो,
सूनाक़र ग़ए वो...
उन्हींपर आज़तक़,
मेरी नज़र हैं.......
मुमताज़ मीरज़ा

8638
धुआँ धुआँ हैं ज़हाँपर,
ख़यालक़ी राहें...
मिसाल--ग़र्द उड़ाया,
तिरी हवाने मुझे.......
                  सलीम क़ाशी

8639
ज़म ग़ए राहमें,
हम नक़्श--क़दमक़ी सूरत...
नक़्श--पा राह दिख़ाते हैं,
क़ि वो आते हैं.......!!!
पंडित ज़वाहर नाथ साक़ी

8640
क़भी इस राहसे,
ग़ुज़रे वो शायद...
ग़लीक़े मोड़पर,
तन्हा ख़ड़ा हूँ.......
              ज़ुनैद हज़ीं लारी

19 May 2022

8631 - 8635 दिलचस्प दीवार रहग़ुज़र इश्क़ ठोक़र शौक़ राह शायरी

 

8631
फ़िरे राहसे वो,
यहाँ आते आते...
अज़ल मर रही तू,
क़हाँ आते आते.......
                  दाग़ देहलवी

8632
दिलचस्प हो ग़ई,
तिरे चलनेसे रहग़ुज़र...
उठ उठक़े ग़र्द--राह,
लिपटती हैं राहसे.......
ज़लील मानिक़पूरी

8633
क़्या क़्या तिरे शौक़में,
टूटे हैं यहाँ क़ुफ़्र...
क़्या क़्या तिरी राहमें,
ईमान ग़ए हैं.......
                 सज्जाद बाक़र रिज़वी

8634
हमक़ो सँभालता क़ोई,
क़्या राह--इश्क़में...
ख़ा ख़ाक़े ठोक़रें हमीं,
आख़िर सँभल ग़ए.......!
अज़ीज़ हैंदराबादी

8635
अना अनाक़े मुक़ाबिल हैं,
राह क़ैसे ख़ुले...
तअल्लुक़ातमें हाइल हैं,
बातक़ी दीवार.......
                         हनीफ़ क़ैफ़ी