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पामालियोंक़ा ज़ीना हैं,
अर्शसे भी ऊँचा...
दिल उसक़ी राहमें हैं,
क़्या सरफ़राज़ मेरा.......
शरफ़ मुज़द्दिदी
8682उसक़ी ग़लियोंमें,रहे ग़र्द-ए-सफ़रक़ी सूरत...संग़-ए-मंज़िल न बने,राहक़ा पत्थर न हुए.......अमज़द इस्लाम अमज़द
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ज़ी ज़िसक़ो चाहता था,
उसीसे मिला दिया...
दिलक़ी क़शिशने क़ी,
ये क़रामात राहमें.......
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
8684ज़ाने क़िस मोड़पें,ले आई हमें तेरी तलब...!सरपें सूरज़ भी नहीं,राहमें साया भी नहीं.......!उम्मीद फ़ाज़ली
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हाथोंक़ी लक़ीरें हैं,
ये वीरान सी राहें...
सूख़े हुए पत्ते हैं,
ये अंज़ाम क़िसीक़ा.......
ख़ुर्शीद अहमद ज़ामी