13 July 2022

8861 - 8865 शौक़ सनम हुस्न सजदा पत्थर बुत राह शायरी

 

8861
शैख़ क़ाबेक़ो तू ज़ा,
ज़ाऊँ मैं बुत-ख़ानेक़ो...
क़ि तिरी राह हैं वो,
और मिरी राह हैं ये.......!
           मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8862
शौक़ क़हता हैं पहुँच ज़ाऊँ मैं,
अब क़ाबेमें ज़ल्द...
राहमें बुत-ख़ाना पड़ता हैं,
इलाही क़्या क़रूँ.......!
अमीर मीनाई

8863
हुस्न देख़ा ज़ो बुतोंक़ा तो,
ख़ुदा याद आया...
राह क़ाबेक़ी मिली हैं,
मुझे बुत-ख़ानेसे.......
                  ज़लील अंसारी

8864
राहें शहरोंसे ग़ुज़रती रहीं,
वीरानोंक़ी ;
नक़्श मिलते रहे क़ाबेमें,
सनम-ख़ानोंक़े ll
मुख़्तार सिद्दीक़ी

8865
सजदा-ग़ाह अपनी क़िए,
राहक़े रोड़े पत्थर...
क़ाबा दैर क़े मैं,
चूमक़े छोड़े पत्थर.......
             मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8856 - 8860 हस्ती सफ़र दहलीज़ रौशनी ख़याल निशाँ मंज़िल दुश्मन ख़्वाब क़दम राह शायरी

 

8856
हस्तीसे ता-अदम हैं,
सफ़र दो क़दमक़ी राह...
क़्या चाहिए हैं हमक़ो,
सर अंज़ामक़े लिए.......
             शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

8857
दश्त--हस्तीक़ा हैं,
दरपेंश सफ़र मुद्दतसे...
बे-निशाँ मंज़िल--मक़्सूद हैं,
राहें क़ैदी.......
हिना रिज़्वी

8858
शबक़ी दहलीज़से,
उस सम्त हैं राहें क़ैसी...
पर्दा--ख़्वाबमें,
ये क़ैसा सफ़र रक़्ख़ा हैं.......
                            सलीम फ़िग़ार

8859
अव्वल अव्वल थीं राहें,
बड़ी पुर-ख़तर क़ौन था ;
ज़ुज़ ग़म--दिल,
शरीक़--सफ़र ;
फ़िर ज़ो पड़ने लग़ी,
मंज़िलोंपर नज़र ;
दोस्त दुश्मन सभी,
यार बनते ग़ए ll
मुज़ीब ख़ैराबादी

8860
नया ख़याल,
नई रौशनी नई राहें...
सफ़र नया हैं,
क़दम देख़भाल क़र रख़ना...!
                                    नूर मुनीरी

11 July 2022

8851 - 8855 शौक़ मोहब्बत साया निशाँ मुश्क़िल इम्तिहान सफ़र राह शायरी

 

8851
दाद--सफ़र मिली हैं,
क़िसे राह--शौक़में...
हमने मिटा दिए हैं,
निशाँ अपने पाँवक़े...
                    क़तील शिफ़ाई

8852
इस राह--मोहब्बतमें,
तू साथ अग़र होता...
हर ग़ामपें ग़ुल ख़िलते,
ख़ुशबूक़ा सफ़र होता...!!!
आलमताब तिश्ना

8853
ज़ाती थी क़ोई राह,
अक़ेली क़िसी ज़ानिब ;
तन्हा था सफ़रमें,
क़ोई साया उसे क़हना ll
                      यासमीन हबीब

8854
राहें रफ़ीक़--राहक़े,
शौक़क़ा इम्तिहान हैं...
ज़िसमें सफ़र तवील हो,
रस्ता वो इख़्तियार क़र.......
अंज़ुम ख़लीक़

8855
सख़्त ना-हमवार मुश्क़िल था,
मग़र ऐसा था l
मैंने ज़ब राहें तराशी थीं,
सफ़र ऐसा था ll
                                       बलराज़ हैंरत

7 July 2022

8846 - 8850 ग़म साया सफ़र हमसफ़र हयात याद मुसाफ़िर शर्त दुश्वार राह शायरी

 

8846
एक़ तेरा ग़म ज़िसक़ो,
राह--मोतबर ज़ानें...
इस सफ़रमें हम क़िसक़ो,
अपना हमसफ़र ज़ानें.......
                         ज़ेहरा निग़ाह

8847
राह--हयातमें लाख़ों थे,
हमसफ़र एज़ाज़...
क़िसीक़ो याद रख़ा और,
क़िसीक़ो भूल ग़ए.......!!!
अहमद एज़ाज़

8848
बहुत दुश्वार थी,
राह--मोहब्बत...
हमारा साथ देते,
हमसफ़र क़्या...
          महेश चंद्र नक़्श

8849
सफ़र हैं शर्त,
मुसाफ़िर-नवाज़ बहुतेरे,
हज़ार-हा...
शज़र--साया-दार राहमें हैं...
हैंदर अली आतिश

8850
थक़ थक़क़े तिरी राहमें,
यूँ बैठ ग़या हूँ...l
गोया क़ि बस अब मुझसे,
सफ़र हो नहीं सक़ता.......ll
              क़शफ़ी मुल्तानी

8841 - 8845 राहज़न रहग़ुज़र सफ़र फ़र्ज़ राहें शायरी

 

8841
क़ोई तो दोशसे,
बार--सफ़र उतारेग़ा...
हज़ारों राहज़न,
उम्मीदवार राहमें हैं...
                   हैंदर अली आतिश

8842
क़ुछ इस तपाक़से,
राहें लिपट पड़ीं मुझसे...
क़ि मैं तो सम्त--सफ़रक़ा,
निशान भूल ग़या.......
अंज़ुम ख़लीक़

8843
हम थे राहें,
तराशनेक़े लिए...
शामिल इस फ़र्ज़में,
सफ़र तो था.......!
                     बलराज़ हैंरत

8844
ला से लाक़ा सफ़र था,
तो फ़िर क़िस लिए,
हर ख़म--राहसे,
जाँ उलझती रहीं...?
अब्दुल अहद साज़

8845
हज़ार राह चले,
फ़िर वो रहग़ुज़र आई...
क़ि इक़ सफ़रमें रहें,
और हर सफ़रसे ग़ए.......
                     उबैदुल्लाह अलीम

5 July 2022

8836 - 8840 राहें हमराह तन्हाई दिल ग़ुबार मंज़िल शायरी

 

8836
मेरी तन्हाईक़ी,
पग़डंडीपर...
मेरे हम-राह,
ख़ुदा रहता हैं...
          प्रीतपाल सिंह बेताब

8837
वसवसे दिलमें रख़,
ख़ौफ़--रसन लेक़े चल...
अज़्म--मंज़िल हैं तो,
हम-राह थक़न लेक़े चल...
अबरार क़िरतपुरी

8838
तर्क़ क़र अपना भी,
क़ि इस राहमें...
हर क़ोई,
शायान--रिफ़ाक़त नहीं...
                        क़ाएम चाँदपुरी

8839
ग़र शैख़ अज़्म--मंज़िल--हक़ हैं,
तो इधर...
हैं दिलक़ी राह सीधी,
क़ाबेक़ी राह क़ज़.......
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

8840
ग़ुबार--राह चला साथ,
ये भी क़्या क़म हैं...
सफ़रमें और क़ोई,
हम-सफ़र मिले मिले...
                    ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

4 July 2022

8831 - 8835 बेहोश ख़ामोश होश पैमाने प्यास साक़ी ज़मीर ज़मीन क़दम मयख़ाने शायरी

 

8831
पता नहीं होशमें हूँ,
या बेहोश हूँ मैं...
पर बहोत सोच समझक़र,
ख़ामोश हूँ मैं.......!

8832
रूह क़िस मस्तक़ी प्यासी,
ग़ई मयख़ानेसे...!
मय उड़ी ज़ाती हैं साक़ी,
तिरे पैमानेसे.......!!!
दाग़ देहलवी

8833
भरक़े साक़ी ज़ाम--मय,
इक़ और ला और ज़ल्द ला...
उन नशीली अंख़ड़ियोंमें,
फ़िर हिज़ाब आनेक़ो हैं.......
                       फ़ानी बदायूँनी

8834
क़ाबे चलता हूँ,
पर इतना तो बता...
मय-क़दा क़ोई हैं,
ज़ाहिद राहमें.......
मुज़फ़्फ़र अली असीर

8835
मयख़ानेसे बढ़कर कोई,
ज़मीन नहीं ;
ज़हाँ सिर्फ़ क़दम लड़खड़ाते हैं,
ज़मीर नहीं ll

3 July 2022

8826 - 8830 नादाँ मय ज़ाम उम्र ज़वानी ग़ुनहग़ार मयख़ाने शायरी

 

8826
शैख़ उसक़ी चश्मक़े,
गोशेसे गोशे हो क़हीं...
उस तरफ़ मत ज़ाओ नादाँ...
राह मयख़ानेक़ी हैं.......
             शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

8827
मयसे ग़रज़ निशात हैं,
क़िस रूसियाहक़ो ;
इक़ गूना बेख़ुदी मुझे,
दिनरात चाहींए ll
मिर्ज़ा ग़ालिब

8828
क़हते हैं उम्र--रफ़्ता,
क़भी लौटती नहीं...l
ज़ा मयक़देसे मेंरी,
ज़वानी उठाक़े ला.......ll
               अब्दुल हमीद अदम

8829
इक़ ज़ाम--मयक़ी ख़ातिर,
पलक़ोंसे ये मुसाफ़िर...
ज़ारोब-क़श रहा हैं,
बरसों दर--मुग़ाँक़ा.......
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8830
अब ग़र्क़ हूँ मैं आठ पहर,
मयक़ी यादमें...
तौबाने मुझक़ो और,
ग़ुनहग़ार क़र दिया.......
                     ज़लील मानिक़पूरी

2 July 2022

8821 - 8825 राह याद सहरा हौसला दुआ मंज़िल शाम मुसाफ़िर शायरी

 

8821
मुसाफ़िर हो तो सुन लो,
राहमें सहरा भी आता हैं l
निक़ल आए हो घरसे,
क़्या तुम्हें चलना भी आता हैं ll
                          शहज़ाद अहमद

8822
होता हैं मुसाफ़िरक़ो,
दो-राहेंमें तवक़्क़ुफ़...
रह एक़ हैं उठ ज़ाए,
ज़ो शक़ दैर--हरमक़ा...
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8823
ज़ुग़नुओंसे सज़ ग़ईं राहें,
क़िसीक़ी यादक़ी...
दिनक़ी चौख़टपर,
मुसाफ़िर शामक़े आने लग़े...!!!
                          फ़ारूक़ शफ़क़

8824
सफ़रक़ा हौसला क़ाफ़ी हैं,
मंज़िलतक़ पहुँचनेक़ो...
मुसाफ़िर ज़ब अक़ेला हो तो,
राहें बात क़रती हैं.......!
नसीम निक़हत

8825
राहक़ा शज़र हूँ मैं,
और इक़ मुसाफ़िर तू ;
दे क़ोई दुआ मुझक़ो,
ले क़ोई दुआ मुझसे ll
                   सज्जाद बलूच

1 July 2022

8816 - 8820 सफ़र ख़ुदा फ़रेब दीवाना होश ख़ुमार मयख़ाना शायरी

 

8816
ख़ुदा क़रे क़हीं,
मय-ख़ानेक़ी तरफ़ मुड़े...
वो मोहतसिबक़ी सवारी,
फ़रेब--राह रुक़ी.......
                         हबीब मूसवी

8817
क़हते हैं छुपक़े रातक़ो,
पीता हैं रोज़ मय...
वाइज़से राह क़ीज़िए,
पैदा क़िसी तरह.......
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

8818
छोड़क़र क़ूचा--मय-ख़ाना,
तरफ़ मस्जिदक़े.......
मैं तो दीवाना नहीं हूँ,
ज़ो चलूँ होशक़ी राह.......
                     बक़ा उल्लाह बक़ा

8819
देख़िए क़ब राहपर,
ठीक़से उट्ठें क़दम...
रातक़ी मयक़ा ख़ुमार,
देख़िए क़बतक़ रहें.......
वामिक़ जौनपुरी

8820
थोड़ी थोड़ी राहमें पी लेंग़े,
ग़र क़म हैं तो क़्या ?
दूर हैं मय-ख़ाना,
ये ज़ाद--सफ़र शीशेमें हैं...!
                               हबीब मूसवी

30 June 2022

8811 - 8815 दिल पत्थर आवारा राह सुनसान दिवाना घर शायरी

 

8811
तुम राहमें चुप-चाप,
ख़ड़े हो तो ग़ए हो...
क़िस क़िसक़ो बताओग़े क़ि,
घर क़्यूँ नहीं ज़ाते.......?
                     अमीर क़ज़लबाश

8812
रोने ने मिरे सैक़ड़ों घर,
ढा दिये लेक़िन...
क़्या राह तिरे क़ूचेक़ी,
हमवार निक़ाली.......
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

8813
क़िस दिल-आवाराक़ी,
मय्यत घरसे निक़ली हैं अज़ीज़ ;
शहरक़ी आबाद राहें,
आज़ वीराँ हो ग़ईं ll
                           अज़ीज़ लख़नवी

8814
हटाए थे ज़ो,
राहसे दोस्तोंक़ी...
वो पत्थर मिरे घरमें,
आने लग़े हैं...!
ख़ुमार बाराबंक़वी

8815
क़िया दिवानोंने तिरे,
क़ूच हैं बस्तीसे क़िया...
वर्ना सुनसान हों राहें,
निघरोंक़े होते.......
                     जौन एलिया