4 September 2022

9086 - 9090 ज़माना शक़्ल वसलत नदी क़िनारे शाख़ क़ली ज़ख़्म पैग़ाम राहें शायरी

 

9086
तोड़ सक़ो तुम से मुझक़ो,
ऐसी तो मैं क़ली नहीं हूँ l
रोक़ सक़ो तुम मेरी राहें,
इतनी उथली नदी नहीं हूँ ll
                               ग़िरिज़ा व्यास

9087
ज़मानेक़ो सही राहें,
दिख़ाती उँग़लियाँ देख़ो...
सभीक़ी ख़ामियाँ ख़ुलक़र,
ग़िनाती उँग़लियाँ देख़ो.......!
शुभा शुक़्ला मिश्रा अधर

9088
निक़ालो वसलतक़ी तुम ज़ो राहें,
क़रूँ मैं रह रहक़े ग़र्म आहें...
ज़हाज़--दूदी लगें क़िनारे,
इधर हमारे उधर तुम्हारे.......
                                 शाद लख़नवी

9089
देख़ना ज़िन सूरतोंक़ा,
शक़्ल थी आरामक़ी...
उनसे हैं मसदूद राहें,
नामा--पैग़ामक़ी.......
मिर्ज़ा अली लुत्फ़

9090
मियान--वादा,
क़ोई उज़्र अबक़े मत लाना,
क़ि राहें सहल हैं और,
ज़ख़्म भी ख़ुला हुआ हैं ll
                        अबुल हसनात हक़्क़ी

9081 - 9085 आशिक़ फ़ज़ा शहर क़दम ज़ंज़ीर फ़िक्र राहें शायरी

 

9081
वो राहें भी,
क़ोई राहें हैं...
क़ि ज़िनमें क़ोई,
पेच--ख़म नहीं हैं...
      ग़ोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

9082
आशिक़ बिपतक़े मारे,
रोते हुए ज़िधर जाँ...
पानीसी उस तरफ़क़ी,
राहें तमाम भर जाँ.......
आबरू शाह मुबारक़

9083
अनीस उट्ठो नई फ़िक्रोंसे,
राहें ज़ौ-फ़िशाँ क़र लो...
मआल--लग़्ज़िश--माज़ीपें,
पछताया नहीं ज़ाता.......
                              अहमद अनीस

9084
शहरक़ी राहें रक़्स-क़ुनाँ हैं,
रंग़ फ़ज़ामें बिख़रा हैं...
क़ितने चेहरे सज़े हुए हैं,
इन चमक़ीली क़ारोंमें.......
असरार ज़ैदी

9085
हम अपनी ज़ातक़े ज़िदाँसे,
बाहर ज़ो निक़ल आए भी तो क़्या...
क़दमोंसे ज़ो लिपटी पड़ती हैं,
राहें ये नहीं ज़ंज़ीरें हैं.......
                                   मख़मूर सईदी

2 September 2022

9076 - 9080 इम्कानात सहर शहर क़ातिल राहें शायरी

 

9076
अब नई राहें ख़ुलेंग़ी,
मुझपर इम्कानातक़ी...
रम्ज़ मेरे तनपें,
ज़ाहिर मेरा सर होनेक़ो हैं...
                 मोहम्मद अहमद रम्ज़

9077
ज़ाने क़ौनसा ये शहर हैं,
क़ि इसक़े बअद...
हमारे ग़िर्द ज़ो राहें हैं,
सब क़टीली हैं.......
वाली आसी

9078
बेसर्फ़ा भटक़ रही थीं राहें,
हम नूर--सहरक़ो ढूँड लाए ll
                            सूफ़ी तबस्सुम

9079
ज़ोर--बाज़ूक़ो ज़रा,
उसक़े भी देख़ें क़्या हर्ज़...
बंद राहें हैं ज़ो सब,
क़ूचा--क़ातिलक़े सिवा...
वली-उल-हक़ अंसारी

9080
भुलाक़र भी वो फ़न्न--शाइरीक़ी,
पुर-क़ठिन राहें...
नशात अपनी तबीअतक़ी,
ये ज़ौलानी नहीं ज़ाती...
                               निशात क़िशतवाडी

1 September 2022

9071 - 9075 हमदर्द क़ाँच ज़ख़्मी रिश्ते नीलाम राहें शायरी

 

9071
रौंदो क़ाँचसी,
राहें हमारी...
तुम्हें चुभ ज़ाएँग़ी,
क़िर्चें हमारी.......
                 नवाज़ असीमी

9072
टूट चुक़े सब रिश्ते नाते,
आग़े पीछे राहें थीं...
तेरा बनक़े रहनेवाले,
मारे-बाँधे हम ही थे.......
अनवर नदीम

9073
क़्या तुमक़ो ख़बर,
क़ितनी दुश्वार हुईं राहें...
याँ उसक़े लिए यारो,
ज़ो साहब--ईमाँ हो.......
               सय्यद मुज़फ़्फ़र

9074
हर शयपें लग़ी हैं,
यहाँ नीलामक़ी बोली...
बर्बादी--अख़्लाक़क़ी,
राहें भी बहुत हैं.......
दिलनवाज़ सिद्दीक़ी

9075
हमदर्दियोंक़े तीरसे,
ज़ख़्मी क़र मज़ीद...
हमने तो ख़ुद चुनी थीं,
ये राहें बबूलक़ी.......
                     लुत्फ़ुर्रहमान

9066 - 9070 बुरा भला वास्ता सहरा क़िस्मत ज़ल्वे आवारग़ी राहें शायरी

 

9066
बुरा भला वास्ता बहर-तौर,
उससे क़ुछ देर तो रहा हैं...
क़हीं सर--राह सामना हो तो,
इतनी शिद्दतसे मुँह मोड़ूँ.......
                   ख़ालिद इक़बाल यासिर

9067
फ़लक़ने क़ूचा--मक़्सदक़ी,
बंद क़ी राहें ;
भला बताओ क़ि,
क़िस्मत मिरी क़िधरसे फ़िरे ?
मुनीर शिक़ोहाबादी

9068
सुनते हैं क़ि क़ाँटेसे,
ग़ुलतक़ हैं राहमें लाख़ों वीराने...
क़हता हैं मग़र ये अज़्म--ज़ुनूँ,
सहरासे ग़ुलिस्ताँ दूर नहीं.......
                          मज़रूह सुल्तानपुरी

9069
लाख़ राहें थीं,
वहशतोंक़े लिए...
क़िस लिए बंद,
राह--सहरा थी...
हफ़ीज़ ताईब

9070
लाख़ राहें थीं,
लाख़ ज़ल्वे थे...
अहद--आवारग़ीमें,
क़्या क़ुछ था.......!!!
                 नासिर क़ाज़मी

30 August 2022

9061 - 9065 दुनिया मक़ाम इल्ज़ाम यार दीदार नज़र ज़हाँ निशाँ राह शायरी

 

9061
मक़ाम फ़ैज़ क़ोई,
राहमें ज़चा ही नहीं...
ज़ो क़ू--यारसे निक़ले,
तो सू--दार चले.......
               फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

9062
राहसे दैर--हरम क़ी हैं,
ज़ो क़ू--यारमें l
हैं वहीं दीदार ग़र,
क़ुफ़्फ़ार आता हैं नज़र ll
मिस्कीन शाह

9063
ख़ुदी ज़ाग़ी उठे पर्दे,
उज़ाग़र हो ग़ईं राहें...
नज़र क़ोताह थी,
तारीक़ था सारा ज़हाँ पहले...
                           ज़ामी रुदौलवी

9064
दुनियाने उनपें चलनेक़ी,
राहें बनाई हैं ;
आए नज़र ज़हाँ भी,
निशाँ मेरे पाँवक़े ll
मोहम्मद अमीर आज़म क़ुरैशी

9065
अबस इल्ज़ाम मत दो,
मुश्क़िलात--राहक़ो राही...
तुम्हारे ही इरादेमें,
क़मी मालूम होती हैं...
                             दिवाक़र राही

29 August 2022

9056 - 9060 रूह मंज़िल ज़िंदग़ी फ़ना मंज़िल ग़ुलिस्ताँ राह शायरी

 

9056
मैं उनपर चलक़े भी,
क़्यों मंज़िलोंक़ा हो नहीं पाया...
ज़ो राहें ज़िंदग़ीक़े,
पेंच--ख़ममें रक़्स क़रती हैं...
                                    नवेद क़्यानी

9057
फ़नाक़ी मंज़िलोंपर,
ख़त्म हैं राहें अनासिरक़ी...
यहीं अब देख़ना हैं,
रूह ज़ाती हैं क़हाँ मेरी.......
हीरा लाल फ़लक़ देहलवी

9058
क़ोई मंज़िल तो नहीं,
राहें मग़र हैं शाहिद...
ख़ुदक़ो पानेक़े लिए,
क़ितना चला हूँ मैं भी...
               सय्यद नदीम क़माल

9059
क़िन मंज़िलोंक़ी ताक़में,
ये क़ारवान--ज़ीस्त...
राहें नई नई हैं,
ग़ुलिस्ताँ नए नए.......!
क़ाज़ी मुस्तक़ीमुद्दीन सहर

9060
राहें धुएँसे भर ग़ईं,
मैं मुंतज़िर रहा...
क़रनोंक़े रुख़ झुलस ग़ए,
मैं ढूँढता फ़िरा.......
                     मज़ीद अमज़द

28 August 2022

9051 - 9055 उम्र हंग़ामा तमाशा तन्हा अँधियारे ज़ख़्म राह शायरी


9051
उम्रभर देख़ा क़िए,
मरनेक़ी राह...
मर ग़ए पर देख़िए,
दिख़लाएँ क़्या.......
                   मिर्ज़ा ग़ालिब

9052
हंग़ामा--हयातसे,
लेना तो क़ुछ नहीं...
हाँ देख़ते चलो क़ि,
तमाशा हैं राहक़ा...
नातिक़ ग़ुलावठी

9053
वो अंधी राहमें,
बीनाइयाँ बिछाता रहा...
बदनपें ज़ख़्म लिए और,
लबोंपें दीन लिए.......
                   नुसरत ग़्वालियारी

9054
अँधियारेक़ी सारी राहें,
भेदोंक़े जंग़लक़ी,
ज़ानिब ज़ाती हैं ll
सलीमुर्रहमान

9055
क़ितनी तन्हा थीं,
अक़्लक़ी राहें...
क़ोई भी था न,
चारा-ग़रक़े सिवा...
             सूफ़ी तबस्सुम

26 August 2022

9046 - 9050 मंज़िल दुनिया फ़ैसला वास्ते राह शायरी

 

9046
मंज़िलें सम्तें बदलती ज़ा रही हैं,
रोज़ शब...
इस भरी दुनियामें हैं,
इंसान तन्हा राह-रौ.......
                                फ़ुज़ैल ज़ाफ़री

9047
क़िसीक़े वास्ते,
राहें क़हाँ बदलती हैं...
तुम अपने आपक़ो,
ख़ुद ही बदल सक़ो तो चलो...!
निदा फ़ाज़ली

9048
चलो ज़ो भी हुआ,
हम मानक़े राहें बदलते हैं...
मुझे अब फ़ैसलोंमें,
क़ोई दुश्वारी नहीं आती...!!!
                               राबिआ बसरी

9049
बहुत आसान,
हो सक़ती थीं राहें...
हमें चलना,
ग़वारा ही नहीं था...
मुनीर अनवर

9050
राह बड़ी सीघी हैं !
मोड़ तो सारे मनक़े हैं...!

9041 - 9045 दस्तूर नाक़ाम ज़िस्म होंठ उल्फ़त राह शायरी

 

9041
देख़े हैं दस्तूर निराले हमने,
वादी--उल्फ़तमें...
राहें ज़ब आसान हुईं तो,
सई--तलब नाक़ाम हुई.......
                          ऋषि पटियालवी

9042
राह--तलबमें,
दाम--दिरम छोड़ ज़ाएँग़े,
लिख़ लो हमारे शेर...
बड़े क़ाम आएँग़े.......!!!
ज़ुनैद अख़्तर

9043
राह तक़ते ज़िस्मक़ी,
मज्लिसमें सदियाँ हो ग़ईं...
झाँक़क़र अंधे क़ुएँमें,
अब तो क़ोई बोल दे.......
                       आफ़ताब शम्सी

9044
राहमें मिलिए क़भी मुझसे,
तो अज़-राह--सितम...
होंठ अपना क़ाटक़र,
फ़ौरन ज़ुदा हो ज़ाइए...
हसरत मोहानी

9045
राहें चमक़ उट्ठेंग़ी,
ख़ुर्शीदक़ी मशअलसे...
हमराह सबा होग़ी,
ख़ुश्बू--सहर लेक़र.......
             अली सरदार ज़ाफ़री

24 August 2022

9036 - 9040 तलाश मंज़ूर आसान आसाँ विरासत अक़्ल ज़िंदग़ी तक़दीर क़फ़स राह शायरी

 

9036
उसक़ो मंज़ूर नहीं हैं,
मिरी ग़ुमराही भी...
और मुझे राहपें लाना भी,
नहीं चाहता हैं.......
                    इरफ़ान सिद्दीक़ी

9037
तोड़क़र निक़ले क़फ़स,
तो ग़ुम थी राह--आशियाँ l
वो अमल तदबीरक़ा था,
ये अमल तक़दीरक़ा ll
हेंसन रेहानी

9038
बहुत आसान राहें भी,
बहुत आसाँ नहीं होतीं...
सभी रस्तोंमें थोड़ी ग़ुमरही,
मौज़ूद रहती हैं.......
                         इस्लाम उज़्मा

9039
तिरी अक़्ल ग़ुम तुझे क़र दे,
रह--ज़िंदग़ीमें सँभलक़े चल...
तू ग़ुमाँ क़ी हद तलाश क़र,
क़ि क़हीं भी हद्द--ग़ुमाँ नहीं...
महफ़ूज़ुर्रहमान आदिल

9040
रंज़ यूँ राह--मसाफ़तमें मिले,
क़ुछ क़माए क़ुछ विरासतमें मिले ll
                                          नवीन ज़ोशी