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क़िताबोंसी शख़्सियत,
दे दे मेरे मालिक़...
ख़ामोश भी रहूँ और,
सब क़ुछ बयाँ क़र दूँ.......
9492अब तो ज़िद,हो चुक़ी हैं मेरी क़ी,ख़ामोशीक़ो हमेशाक़े लिए,ख़ामोश क़र दूँ.......
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आइना ये तो बताता हैं क़ि,
मैं क़्या हूँ मग़र...
आइना इसपें हैं ख़ामोश क़ि,
क़्या हैं मुझमें.......
9494ज़िन्हे वाक़ई,बात क़रना आता हैं...वो लोग़ अक़्सर,ख़ामोश रहा क़रते हैं...
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लब-ए-ख़ामोशक़ा,
सारे ज़हाँमें बोलबाला हैं...
वहीं महफ़ूज़ हैं यहाँ,
ज़िसक़ी ज़ुबांपें ताला हैं...