8 February 2018

2321 - 2325 इश्क ज़िन्दगी कुछ ख़फ़ा दफ़ा डर फिक्र लफ़्ज़ चिंगारियाँ नज़ममें बंदगी फसाने आँसू शायरी


2321
लगता हैं, 
आज ज़िन्दगी कुछ ख़फ़ा हैं,
चलिए छोड़िये,
कौनसा पहली दफ़ा हैं...

2322
किसीको खोनेका डर होना.....
" इश्क नहीं ";
किसीको खोनेके डरसे बेफिक्र होना.....
इश्क हैं ".......
2323
कागज़पर गिरते ही फूटे लफ़्ज़ कई
कुछ धुआँ उठा... चिंगारियाँ कुछ
इक नज़ममें फिरसे आग लगी !
जलते शहरमें बैठा शायर
इससे ज़यादा करे भी क्या?
लफ़्ज़ोंसे आग नहीं बुझती
नज़मोंसे ज़ख्म नहीं भरते......!
                                        गुलजार

2324
बंदगीके मुझे,
आते हैं सलीके सारे...
तुमको फुरसत ही नहीं...
मेरा खुदा होनेकी !!!

2325
सोचा ही नहीं था...
ज़िन्दगी में ऐसे भी फसाने होंगे.....
रोना भी जरुरी होगा ,
आँसू भी छुपाने होंगे.....!

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