2401
हलकी फुल्कीसी हैं जिंदगी
बोज तो सिर्फ ख्वाहिशोका हैं,
तमाम ठोकरें खानेके बाद...
ये अहसास हुआ मुझे...
कुछ नहीं कहती हाथोंकी लकीरें...
खुद बनानी पड़ती हैं बिगङी तकदीरें...!
2402
कुछ शिकवें ऐसे भी हैं.......
जो खुद ही किये
और खुद ही सुने.......
2403
अभी तो साथ चलना हैं,
समंदरों कि लहरोंमें;
किनारोंपर ही देखेंगे...
किनारा कौन करता हैं.......
2404
बादलोंसे टूटकर भी,
लिपटी हैं पत्तोंके दामनसे;
ज़मींपर गिरनेसे डरती हैं,
शायद कुछ बूंदे.......
2405
"सुनते आये हैं की,
पानीसे कट जाते हैं पत्थर,
शायद मेरे आँसुओंकी धार ही,
थोड़ी कम रही होगी..."
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