2556
वो ज़हर देता
तो,
दुनियाँकी नज़रोंमें आ जाता...
सो उसने यूँ
किया के,
वक़्तपें दवा
न दी.......
2557
मेरे शेरोंमें जो,
रूमानियत आई हैं,
ये तो करम
हैं,
तेरी बेवफ़ाईका....
2558
बहा करले
गया,
सैलाब सब
कुछ...
फ़क़त आँखोंकी,
वीरानी
बची हैं.......
2559
उनकी चाहतमें
हम,
कुछ यूँ बंधे
हैं;
कि वो साथभी नहीं,
और हम अकेले
भी नहीं...!
2560
बिना मतलबके
दिलसे भी,
नहीं
मिलते यहाँ ।
लोग दिलमें
भी,
दिमाग लिए
घूमते हैं.......
No comments:
Post a Comment