8 April 2018

2586 - 2590 दिल भूल वक्त शिकवा बेरुखी लम्हा साँस याद शौक ज़लील अज़ब तमाशा शिकायत शायरी


2586
तुम थे तो,
वक्त रुकता ही नहीं था,
अब ये वक्त गुजरनेके लिए भी,
बहुत वक्त लगता हैं !

2587
नहीं हैं शिकवा,
तेरी बेरुखीका....
शायद मुझे ही तेरे दिलमें,
घर बनाना नहीं आया.......

2588
मुझे भी सिखा दो,
"भूल" जानेका हुनर...
मैं थक गया हूँ हर लम्हा, हर साँस,
तुम्हें याद करते करते.......

2589
नहीं रहा जाता तेरे बिना...
इसीलिए तेरे पास आते हैं...
वरना हमे भी कोई शौक नहीं हैं;
बार बार ज़लील होनेका.......

2590
वो सामने आये तो,
अज़ब तमाशा हुआ...
हर शिकायतने जैसे,
 शिकायतकर ली।

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