30 April 2018

2671 - 2675 दिल प्यार ज़िन्दगी महफिल कातील साहील लब्ज़ वजह कश्मकश वक़्त जमाना दर्द बेचैन याद आँसु शायरी


2671
महफिल भी रोयेगी, हर दिल भी रोयेगा,
डूबी जो मेरी कश्ती तो साहील भी रोयेगा,
इतना प्यार बिख़े देंग़े जमानेमें हम,
की मेरी मौतपें मेरा कातील भी रोयेगा...

2672
" लब्ज़ ही ऐसी चीज़ हैं,
जिसकी वजहसे इंसान
या तो दिलमें उतर जाता हैं,
या दिलसे उतर जाता हैं ! "

2673
ज़िन्दगीके इस कश्मकशमें,
वैसे तो मैं भी काफ़ी बिजी हुँ,
लेकिन वक़्तका बहाना बनाकर,
अपनोंको भूल जाना मुझे आजभी नहीं आता !

2674
जमाना बहोत तेज चल रहा हैं साहेब...
एक दिन कुछ लिखू,
तो लोग मुझे भूलने लगते हैं;
जिसका दर्द उसीका दर्द,
बाक़ी सबके लिए वो तमाशा हैं...  ||

2675
याददाश्तका कमज़ोर होना...
बुरी बात नहीं हैं जनाब...
बड़े बेचैन रहते हैं वो लोग...
जिन्हे हर बात याद रहती हैं;
कही लगता हैं वो हमे सता रहे हैं...
कभी लगा कि वो करीब रहे हैं...
कुछ लोग होते हैं आँसुओकी तरह,
पता ही नहीं लगता साथ दे रहे हैं...
या छोके जा रहे हैं.......!

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