24 April 2018

2641 - 2645 ज़िन्दगी रिश्ते घमण्ड कसूर ग़म चाह हौसला बयान गवाह बेवफा नज़्म नाम शर्त शायरी


2641
घमण्डसे भी अक्सर,
खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते...
कसूर हर बार,
गल्तियोंका नहीं होता...

2642
मत उलझ  दोस्त,
मुझे ग़म देनेकी चाहमें...
मुझमें हौसला हैं,
मैं मुस्कुराके निकल जाऊँगा।।

2643
जैसे बयानसे,
मुकर जाए कोई गवाह...
बस इतनीसी,
बेवफा हैं वो !!!

2644
"लिख दूँ....... की रहने दूँ.......
नज़्म तेरे नामकी...
तुझे खुश कर पाऊँ तो,
ज़िन्दगी किस कामकी.......!"

2645
एक ही शर्तपें बाटूँगा खुशी;
तेरे ग़ममें मेरा हिस्सा होगा...!

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