11 April 2018

2601 - 2605 मुकद्दर बात नाम याद सुकून साहिल मजबूर किनारा लहर कसूर नज़र नाराज़ शिकायत शायरी


2601
तू मिले या ना मिले,
ये मुकद्दरकी बात हैं;
पर सुकून बहुत मिलता हैं,
तुझे अपना सोचकर...!

2602
यूँ तो कोई शिकायत नहीं,
मुझे मेरे आजसे,
मगर कभी-कभी बीता हुआ कल,
बहुत याद आता हैं.......

2603
साहिलपें बैठे यूँ सोचता हूँ मैं आज,
कौन ज्यादा मजबूर हैं...
ये किनारा जो चल नहीं सकता या,
या वो लहर जो ठहर नहीं सकती ?

2604
कसूर मेरा था,
तो कसूर उनका भी था,
नज़र हमने जो उठाई थी,
तो वो झुका भी सकते थे...

2605
नाराज़ ना होना कभी यह सोचकर क़ि...
काम मेरा और नाम किसी औरका हो रहा हैं
यहाँ सदियोंसे जलते तो "घी" और "बाती" हैं...
पर लोग कहते हैं कि 'दीपक' जल रहा हैं 

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