3 April 2018

2561 - 2565 यादें ग़म मौत हुस्न वक़्त आँख आँसू आँचल कफ़न जीभर होश ख़्वाब शायरी


2561
बस जीने ही तो नहीं देगी
और क्या कर लेगी,
तेरी यादें . . . . . . .

2562
ग़म मौतका नहीं ,
ग़म ये के आखिरी वक़्त भी
तू मेरे घर नहीं...
निचोड़ अपनी आँखोंको,
के दो आँसू टपके...
और कुछ तो मेरी लाशको हुस्न मिले...
डाल दे अपने आँचलका टुकड़ा...
के मेरी मय्यतपें कफ़न हीं हैं.......

2563
उसने जी भरके चाहा था मुझे                                           
फिर यूँ हुआ कि...
उसका जी भर गया.......

2564
मेरे गमने,
होश उनके भी खो दिए,
वो समझाते समझाते,
खुद ही रो दिए.......

2565
काश वो सुबह जागते ही
मुझसे लड़ने आते,
की कौन होते हो तुम...
मेरे  ख़्वाबमें आने वाले !!!

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