23 April 2018

2636 - 2640 ज़िन्दगी मोहब्बत याद कसम पल दर्द हिसाब मंज़िल ग़म उदास फ़िक्र पनाह चाहत शायरी


2636
तुझे ज़िन्दगीभर याद रखनेकी,
कसम तो नहीं ली,
पर एक पलके लिए,
तुझे भुलाना भी मुश्किल हैं !

2637
अगर मोहब्बतकी
हद नहीं कोई...
तो फिर,
दर्दका हिसाब क्यों रखूँ...

2638
मंज़िलोंके ग़ममें रोनेसे,
मंज़िलें नहीं मिलती;
हौंसले भी टूट जाते हैं,
अक्सर उदास रहनेसे।

2639
ये जो उनकी...
बेफ़िक्री हैं,
ये हमारी ही बेपनाह,
चाहतका नतीजा हैं...

2640
ना मैं शायर हूँ;
ना मेरा शायरीसे कोई वास्ता,
बस शौक बन गया हैं,
तेरी यादें बयान करना...!

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