5111
इनकार कर दिया
आँसूओंने,
आँखमें आनेसे...
क्यूँ गिराते हो हमे,
एक गिरे हुए
शख्सकी खातिर...
5112
बहुत अन्दर तक,
तबाही मचाता है...
वो आँसू...
जो आँखसे
बह नहीं पाता...
5113
कब तक बहाना
बनाते रहें,
आँखमें कचरा
चले जानेका...
ले आज सरेआम
कहते हैं,
तुझे याद करके
रोते हैं.......!
5114
कमी तो होनी
ही है,
पानीकी, शहरमें...
न किसीकी
आँखमें बचा
है,
न किसीके
जज़्बातमें...
5115
वक्तकी धुंधमें हरदम,
छुप जाते हैं
ताल्लुक...
बहुत दिनों तक किसीकी,
आँखसे ओझल
ना रहिये...
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