7 December 2019

5141 - 5145 ज़िन्दगी आशिकी गज़ब मजबूर सलाम महफ़िल नज़र गजल नज्म कत्ल निगाहें शायरी


5141
गज़बकी आशिकी है,
इन निगाहोमें...
जब भी देखती है,
डूबनेको मजबूर कर देती है...!

5142
बैठे है महफ़िलमें,
इसी आसमें की...
वो निगाहें उठाएं तो,
हम सलाम करे.......!

5143
उसकी निगाहोंमें,
इतना असर था की...
खरीद ली उसने एक नज़रमें,
ज़िन्दगी मेरी.......

5144
गजलके नज्म,
जैसा है तेरा चेहरा;
निगाहें शेर पढ़ती है,
तो लब इरशाद कहते है...!

5145
धारा तीनसौ सात लगनी चाहिए,
तेरी निगाहों पर...
यूँ देखना भी कत्लकी,
कोशिशों में शुमार होता है.......!

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