19 December 2019

5201 - 5205 मंजर इश्क याद चाहत अल्फ़ाज़ दर्द बेरुखी आँख किताब महफ़िल शायरी


5201
तुम्हारी याद तुम्हारी चाहत,
शायरीके अल्फ़ाज़ बन गये...
भरी महफ़िलमें भी लोग,
मेरे दर्दको वाह - वाह कह गये...!

5202
भरी महफ़िलमें पूछा गया,
इश्क क्या है...
लोग किताबोंमें ढूंदने लगे,
और हमारी नजर तुमपर जा टिकी...!

5203
ना ये महफ़िल अजीब है, ना ये मंजर अजीब है;
जो उसने चलाया, वो खंजर अजीब है;
ना डूबने देता है, ना उबरने देता है;
उसकी आँखोंका वो समंदर अजीब है...!

5204
हजारो महफ़िल है,
लाखोके मेले हैं...
पर जहाँ तू नहीं वहाँ,
हम बिल्कुल अकेले हैं...

5205
देखी है बेरुखीकी,
आज हमने इन्तेहाँ...
हमपे नजर पड़ी तो,
वो महफ़िलसे उठ गए...

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