23 December 2019

5221 - 5225 दिल लफ्ज दहलीज घायल ज़ुबान तन्हाई फुरसत वक्त मुद्दत आरज़ू नज़्म महफिल शायरी


5221
लफ्जोकी दहलीजपर,
घायल ज़ुबान है...
कोई तन्हाईसे तो,
कोई महफ़िलसे परेशान है...

5222
फुरसत निकालकर आओ,
कभी हमारी महफ़िलमें...
लौटते वक्त दिल नही पाओगे,
अपने सीनेमें.......!

5223
बड़ी मुद्दतोंमें सीखा था हमनें,
तन्हा जीने का हुनर...
आप ने आकर फिर,
महफ़िलोंकी आरज़ू जगा दी...!

5224
मेरी महफ़िलमें नज़्मकी,
इरशाद अभी बाकी है...
कोई थोड़ा भीगा है,
अभी पूरी बरसात बाकी हैं...!

5225
महफ़िल में जो हमे,
दाद देने से कतराते हैं...
सुना है तन्हाईयोंमें वो,
हमारी शायरी गुनगुनाते हैं...!

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