5146
सुरमे की तरह
पीसा है,
हमें हालातोंने...
तब जा के
चढ़े है,
लोगोंकी निगाहोंमें.......
5147
फ़रियाद कर रही
है,
तरसती हुई
निगाहें...
देखे हुए किसीको,
ज़माना गुज़र
गया...!
5148
निगाहें
आज भी टकटकी
लगाये है,
उस मंजर पर.......
जहाँ तुमने कहाँ,
रूको, हम लौटकर
आते है...!
5149
निगाहोंसे,
कितना दूर करोगे...
खयालोंसे दूर
करो,
तो मान लूँ.......!
5150
लब थरथराके रह
गए,
लेकिन वो, 'ऐ
ज़िगर'...
जाते हुए भी,
निगाह मिलाकर चले गए.......!
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