6986
अब तो ख़ुशीका ग़म हैं,
न ग़म की ख़ुशी मुझे...
बे-हिस बना चुकी हैं,
बहुत ज़िंदगी मुझे.......
6987सौत क्या शय हैं,ख़ामुशी क्या हैं...ग़म किसे कहते हैं,ख़ुशी क्या हैं.......!
6988
खुशियाँ बहुत सस्ती हैं.
इस दुनियामें !
हमही ढूंढते हैं उसे,
महंगी दुकानोंमें...!!!
6989तमाम उम्र ख़ुशीकी,तलाशमें गुज़री...तमाम उम्र तरसते रहें,ख़ुशीके लिए.......
6990
ग़म हैं न अब ख़ुशी हैं,
न उम्मीद हैं न यास...
सबसे नजात पाए,
ज़माने गुज़र गए.......!
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