3 January 2021

6986 - 6990 ज़िंदगी दुनिया खुशियाँ तलाश ख़ामुशी ख़ुशी ग़म शायरी

 

6986
अब तो ख़ुशीका ग़म हैं,
ग़म की ख़ुशी मुझे...
बे-हिस बना चुकी हैं,
बहुत ज़िंदगी मुझे.......

6987
सौत क्या शय हैं,
ख़ामुशी क्या हैं...
ग़म किसे कहते हैं,
ख़ुशी क्या हैं.......!

6988
खुशियाँ बहुत सस्ती हैं.
इस दुनियामें !
हमही ढूंढते हैं उसे,
महंगी दुकानोंमें...!!!

6989
तमाम उम्र ख़ुशीकी,
तलाशमें गुज़री...
तमाम उम्र तरसते रहें,
ख़ुशीके लिए.......

6990
ग़म हैं अब ख़ुशी हैं,
उम्मीद हैं यास...
सबसे नजात पाए,
ज़माने गुज़र गए.......!

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