13 January 2021

7031 - 7035 ज़माना मुलाक़ात मोहब्बत दीदार चराग़ उम्मीद शायरी

 

7031
फूटनेको थी,
उम्मीदकी इक किरन...
हो गई फिर,
उनकी मेहरबानी नई...
                     क़ैसर ख़ालिद

7032
एक रात आपने,
उम्मीदपें क्या रक्खा हैं...
आज तक हमने,
चराग़ोंको जला रक्खा हैं...!

7033
नजरमें शोखियाँ,
लबपर मोहब्बतका तराना हैं...
मेरी उम्मीदकी ज़दमें,
अभी सारा ज़माना हैं.......

7034
बे-क़रारी थी सब,
उम्मीद--मुलाक़ातके साथ;
अब वो अगलीसी दराज़ी,
शब--हिज्राँ में नहीं ll

7035
उसके दीदारकी उम्मीद,
दोबारा कैसी...
कहीं होती हैं तजल्लीको भी,
तकरार ग़लत.......
                           मुर्लीधर शाद

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