7071
इतना भी ना-उम्मीद,
दिल-ए-कम-नज़र न हो l
मुमकिन नहीं कि,
शाम-ए-अलमकी सहर न हो ll
7072नहीं हैं ना-उम्मीद इक़बाल,अपनी किश्त-ए-वीरांसे...ज़रा नम हो तो ये मिट्टी,बहुत ज़रखेज़ हैं साक़ी.......
7073
यूँ ही तो कोई किसीसे,
जुदा नहीं होता...
वफ़ाकी उम्मीद ना हो तो,
कोई बेवफ़ा नहीं होता.......
7074उनकी उल्फ़तका यकीं हो,उनके आनेकी उम्मीद...हों ये दोनों सूरतें तब हैं,बहार-ए-इंतज़ार.......
7075
अबके गुज़रो उस गलीसे,
तो जरा ठहर जाना...
उस पीपलके सायेमें मेरी,
उम्मीद अब भी बैठी हैं.......!
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