4 January 2021

6991 - 6995 ज़िंदगी ज़माने ख़बर आँख आँसू ख़ुशी ग़म शायरी

 

6991
ख़ुशीकी आँखमें,
आँसूकी भी ज़गह रखना...
बुरे ज़माने कभी,
पूछकर नहीं आते.......

6992
फिर देके ख़ुशी,
हम उसे नाशाद करें क्यूँ...?
ग़महीसे तबीअत हैं,
अगर शाद किसीकी.......

6993
ढूँड लाया हूँ, ख़ुशीकी छाँव...
जिसके वास्ते,
एक ग़मसे भी उसे,
दो-चार करना हैं मुझे...

6994
वस्लकी रात,
ख़ुशीने मुझे सोने दिया;
मैं भी बेदार रहा,
ताले--बेदारके साथ ll

6995
मुझे ख़बर नहीं,
ग़म क्या हैं और ख़ुशी क्या हैं...
ये ज़िंदगीकी हैं सूरत,
तो ज़िंदगी क्या हैं.......?

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