3441
ख्वाहिश
बड़ी,
नादान होती
हैं...
मुकम्मल
होते ही,
बदल जाती हैं.......!
3442
वो भी क्या
ज़िद्द थी,
जो
तेरे-मेरे बीच
एक हद थी...
मुलाकात
मुकम्मल ना सही,
मुहब्बत बेहद
थी.......!
3443
हमसे मुकम्मल हुई ना
कभी,
ए जिन्दगी
तालीम तेरी...
शागिर्द
कभी हम बन
न सके,
और
उस्ताद तूने बनने
ना दिया...!
3444
घरकी इस
बार,
मुकम्मल
तलाशी लूंगा !
पता नहीं ग़म
छुपाकर...
हमारे माँ बाप
कहां रखते थे...?
3445
किश्तोंमें खुदकुशी,
कर
रही हैं ये
जिन्दगी;
इंतज़ार तेरा.......
मुझे मुकम्मल
मरने भी नहीं
देता !!!