17 June 2019

4371 - 4375 इश्क़ आरजू मोहब्बत दुआ परख इलज़ाम ज़माने कदर शायरी


4371
छोड दी हमने हमेशाके लिए,
उसकी आरजू करना...
जिसे मोहब्बतकी कदर ना हो,
उसे दुआओं मे क्या मांगना...!

4372
जो कदर नहीं करते,
उनके लिये लोग रोते हैं...
और जो हर किसीकी कदर करते हैं,
लोग उन्हें अक्सर रुलाते हैं...!

4373
परखसे परे हैं,
ये शख्सियत मेरी...
मैं उन्हीके लिए हूँ,
जो समझे कदर मेरी...!

4374
मत देखो हमें तुम,
यूँ इस कदर...
इश्क़ तुम कर बैठोगे और,
इलज़ाम हमपे लग जायेगा.......!

4375
इस कदर बट गए हैं,
ज़मानेमें सभी...
अगर खुदा भी आकर कहें,
"मैं भगवान हुँ"
तो लोग पुछ लेंगे,
"किसके ?"

16 June 2019

4366 - 4370 प्यार आज़ाद कैद तस्वीर नफरत बोझ दवा असर नज़र शायरी


4366
से कहो एक बार देखके,
आज़ाद कर दे मुझे।
मैं आज भी की,
पहली नज़रकी कैदमें हूँ ।।

4367
सुनो! बार बार मेरी,
तस्वीर ना देखा करो...
नज़र मोहब्बतकी होगी,
तो नज़र लग जाऐगी...!

4368
अच्छा हैं कुछ लोग हमें,
नफरतसे देखते हैं...
सभी प्यारसे देखेंगे तो,
नज़र लग जायेगी ना...

4369
पांवोंके लड़खड़ानेपे तो,
सबकी हैं नज़र...
सर पर हैं कितना बोझ,
कोई देखता नहीं.......

4370
दवा जब असर ना करे,
तो नज़रें उतारती हैं...
माँ हैं ज़नाब,
ये हार कहाँ मानती हैं...!

15 June 2019

4361 - 4365 मसरूफ़ ख़बर ठोकर पत्थर हासिल मंज़र आवाज़ मुहब्बत कदर उसूल नज़र शायरी


4361
ये सोचना ग़लत हैं,
कि तुमपर नज़र नहीं हैं;
मसरूफ़ हम बहुत हैं,
मगर बे-ख़बर नहीं हैं...!

4362
नज़रको नज़रकी ख़बर ना लगे
कोई अच्छा भी इस कदर ना लगे,
आपको देखा हैं बस उस नज़रसे,
जिस नज़रसे आपको नज़र ना लगे...!

4363
मैने दबी आवाज़में पूछा,
मुहब्बत करने लगी हो...
नज़रें झुकाकर,
वो बोली "बहुत"...

4364
ठोकर ना लगा मुझे पत्थर हीं हूँ मैं,
हैरतसे ना देख कोई मंज़र हीं हूँ मैं...
उनकी नज़रमें मेरी कदर कुछ भी हीं,
मगर उनसे पूछो जिन्हें हासिल हीं हूँ मैं...

4365
उसूलोंपे जहाँ आँच आये,
टकराना ज़रूरी हैं;
जो ज़िन्दा हों तो फिर,
ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी हैं...!
                                 वसीम बरेलवी

14 June 2019

4356 - 4360 साँस लफ़्ज़ निगाह मुस्कान कत्ल ज़िन्दगी मुद्दतें मुलाक़ात धड़कन नज़र शायरी


4356
सुना हैं तुम्हारी एक निगाहसे,
कत्ल होते हैं लोग...
एक नज़र हमको भी देख लो,
ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती.......


4357
मुद्दतें गुज़रीं,
मुलाक़ात हुई थी तुमसे...
फिर कोई और आया नज़र,
आईनेमें.......!

4358
मैं अन्दरसे समंदर हूँ,
बाहर आसमान...
बस मुझे उतना समझ,
जितना नज़र आता हूँ मैं.......

4359
धड़कन संभालूँ,
साँसोंको काबूमें करूं...
तुझे नज़रभर देखनेमें,
मसले बहुत हैं.......

4360
लफ़्ज़ मैने भी चुराए हैं,
कई जगहसे...
कभी उनकी मुस्कानसे,
कभी नज़रसे.......!

13 June 2019

4351 - 4355 इजहार इश्क़ याद ज़िन्दगी कारवाँ वक़्त लम्हा महफ़िल क़ातिल ख्वाहिश हसरत शायरी


4351
कभी मुझे वक़्त नहीं मिलता,
कभी तुझे फ़ुरसत नहीं होती;
पर ऐसा कोई लम्हा नहीं,
जिसमें आपकी हसरत नहीं होती...!

4352
मुझे भी शामिल करो,
गुनहगारोंकी महफ़िलमें...
मैं भी क़ातिल हूँ अपनी हसरतोंका,
मैने भी अपनी ख्वाहिशोंको मारा हैं...

4353
कारवाँ - -ज़िन्दगी
हसरतोके सिवा कुछ भी नहीं,
ये किया नहीं, वो हुआ नहीं,
ये मिला नहीं, वो रहा नहीं...!

4354
लाओ, पोंछ दू तुम्हारे माथेका पसीना, 
अज़ीज़ हसरतों.......
तुम भी थक गयी होगी, 
मेरी ज़िन्दगीका गला घोटते घोटते.......

4355
हसरतोंसे भरी ज़िन्दगी,
तुझे खुदा हाफिज...!
इजहार -- इश्क़की यादें,
तुझे सलाम ...!

12 June 2019

4346 - 4350 आरजू तारा जरुरत आँख ख्वाब तमाम ख्वाहिश हसरत शायरी


4346
मेरी आरजू हमेशा यहीं होती हैं,
के तू मुझे समझे...
लोग वाह वाह करे,
ये हसरत नहीं हैं.......!

4347
आज फिर एक हसरत लेकर,
हम छतपर आये हैं...
कोई टूटता तारा दिखे,
और हम तुझे मांग ले...!

4348
वो मेरी हसरत थी,
मैं उसकी जरुरत था;
फिर क्या था,
जरुरत पूरी हो गई,
हसरत अधूरी रह गई...

4349
कुछ ख्वाहिशें, कुछ हसरतें,
अभी बाकी हैं...
टूटकर भी लगता हैं...
टूटना अभी बाकी हैं.......

4350
आँख खुली तो,
जाग उठी हसरतें तमाम;
उसको भी खो दिया,
जिसको पाया था ख्वाबमें...

4341 - 4345 मोहब्बत जरुरत नज़र याद ख़्वाब आँख नींद इन्तजार गुनाह ख्वाहिश हसरत शायरी


4341
नहीं मालूम हसरत हैं,
या तू मेरी मोहब्बत हैं...
बस इतना जानता हूँ कि,
मुझको तेरी जरूरत हैं.......

4342
मैं आपकी नज़रोंसे,
नज़र चुरा लेना चाहता हूँ...
देखनेकी हसरत हैं,
बस देखते रहना चाहता हूँ.......

4343
मुझे मालूम हैं,
ऐसा कभी मुमकिन ही नहीं...
फ़िरभी हसरत रहती हैं,
कि तुम याद करोगी.......

4344
तुझे छूनेकी हसरत,
ना जाने क्या ख़्वाब दिखा जाती हैं...
आँखोंमें इन्तजार और,
रातोकी नींद उड़ा जाती हैं.......

4345
हसरत पूरी ना हों,
तो ना सही...
ख्वाहिश करना,
कोई गुनाह तो नहीं...!

11 June 2019

4336 - 4340 जिंदगी याद वक़्त सिललिसा फैसला मोहताज इबादत खयालात खुशी लम्हे शायरी


4336
कुछ लम्हे गुजारे हैं,
मैने भी अपने खास दोस्तो संग;
लोग उन्हें वक़्त कहते हैं ओर,
हम उन्हे जिंदगी कहते हैं...

4337
किसीने क्या खूब लिखा हैं...!
कल हम होंगे गिला होगा।
सिर्फ सिमटी हुई यादोंका सिललिसा होगा।
जो लम्हे हैं चलो हंसकर बिता लें।
जाने कल जिंदगीका क्या फैसला होगा।

4338
कितने भी समेट लो लम्हे,
हाथोंसे फिसलते ज़रूर हैं...
ये वक़्तके मोहताज हैं साहब,
बदलता ज़रूर हैं.......!

4339
जुबानी इबादत ही काफी नहीं...
खुदा सुन रहा हैं,
लम्हे खयालातके भी...!

4340
कल खुशीके कुछ लम्हे मिले थे,
जल्दीमें थे...
रूके भी हीं.......