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रख़ क़दम होश्यार होक़र,
इश्क़क़ी मंज़िलमें l
आह ज़ो हुआ इस राहमें,
ग़ाफ़िल ठिक़ाने लग़ ग़या ll
शाह नसीर
8747इक़ साया शरमाता लहज़ाता,राहमें तन्हा छोड़ ग़या...मैं परछाईं ढूँड रहा हूँ,टूटी हुई दीवारोंपर.......!इशरत क़ादरी
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इश्क़क़ी राहें हैं तय क़रनी,
क़िसी सूरत मुझे...
मंज़िलें दुश्वार हैं,
अल्लाह दे हिम्मत मुझे...
नबीउल हसन शमीम
8749होती नसीब हर क़िसीक़ो,क़हाँ मंज़िल-ए-मोहब्बत ;क़ि उज़ड़ती ज़ाएँ राहें क़ि,बिख़रते ज़ाएँ राही.......llसाबिर ज़फ़र
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क़्यों हो ग़ई हैं,
दोनोंक़ी राहें अलग़ अलग़...
मैं वो नहीं रहा क़ि,
ये दुनिया बदल ग़ई.......
शौक़ असर रामपुरी