8856
हस्तीसे ता-अदम हैं,
सफ़र दो क़दमक़ी राह...
क़्या चाहिए हैं हमक़ो,
सर अंज़ामक़े लिए.......
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
8857दश्त-ए-हस्तीक़ा हैं,दरपेंश सफ़र मुद्दतसे...बे-निशाँ मंज़िल-ए-मक़्सूद हैं,राहें क़ैदी.......हिना रिज़्वी
8858
शबक़ी दहलीज़से,
उस सम्त हैं राहें क़ैसी...
पर्दा-ए-ख़्वाबमें,
ये क़ैसा सफ़र रक़्ख़ा हैं.......
सलीम फ़िग़ार
8859अव्वल अव्वल थीं राहें,बड़ी पुर-ख़तर क़ौन था ;ज़ुज़ ग़म-ए-दिल,शरीक़-ए-सफ़र ;फ़िर ज़ो पड़ने लग़ी,मंज़िलोंपर नज़र ;दोस्त दुश्मन सभी,यार बनते ग़ए llमुज़ीब ख़ैराबादी
8860
नया ख़याल,
नई रौशनी नई राहें...
सफ़र नया हैं,
क़दम देख़भाल क़र रख़ना...!
नूर मुनीरी