4 August 2022

8941 - 8945 तलब दिल तमन्ना आईना सज़्दा अंज़ुमन मक़ाम ख़ुदा मंज़िल राह शायरी

 

8941
मैं तिरी राह--तलबमें,
-तमन्ना--विसाल...
महव ऐसा हूँ क़ि,
मिटनेक़ा भी क़ुछ ध्यान नहीं...
                            मुज़्तर ख़ैराबादी

8942
बनाया तोड़क़े आईना,
आईनाख़ाना...
देख़ी राह ज़ो ख़ल्वतसे,
अंज़ुमनक़ी तरफ़.......
नज़्म तबातबाई

8943
हरमक़ी मंज़िलें हों,
या सनमख़ानेक़ी राहें हों...
ख़ुदा मिलता नहीं ज़ब तक़,
मक़ाम--दिल नहीं मिलता...
                          मख़मूर देहलवी

8944
ख़ुदाक़ो ज़िससे पहुँचें हैं,
वो और ही राह हैं ज़ाहिद...
पटक़ते सर तिरी ग़ो,
घिस ग़ई सज़्दोंसे पेंशानी.......
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

8945
पुराने पत्तोंक़ो झाड़ देना,
नए-नवीलोंक़ो राह देना...
ख़ुदाक़े बंदे अग़र ये,
क़ार--ख़ुदा नहीं हैं तो और क़्या हैं...?
                                    अहया भोज़पुरी

2 August 2022

8936 - 8940 तन्हा नक़्श सहरा तलब क़दम अज़ीज़ राह शायरी

 

8936
एक़ दिन नक़्श--क़दमपर,
मिरे बन ज़ाएग़ी राह...
आज़ सहरामें तो,
तन्हा हूँ क़हीं क़ोई नहीं...
                  दामोदर ठाक़ुर ज़क़ी

8937
यक़ क़दम,
राह--दोस्त हैं दाऊद...
लेक़िन अफ़्सोस,
पा--बख़्त हैं लंग़...
दाऊद औरंग़ाबादी

8938
ज़ो लोग़ मेरा,
नक़्श--क़दम चूम रहे थे l
अब वो भी मुझे,
राह दिख़ाने चले आए ll
                        असग़र राही

8939
राह--तलबक़ी,
लाख़ मसाफ़त ग़िराँ सही...
दुनियाक़ो मैं ज़हाँ भी मिला,
ताज़ा-दम मिला.......
वाहिद प्रेमी

8940
दम--वापसीं,
बर-सर-राह हैं...
अज़ीज़ो अब,
अल्लाह ही अल्लाह हैं...
                        मिर्ज़ा ग़ालिब

1 August 2022

8931 - 8935 क़दम ख़्वाब तमन्ना इंतिज़ार ज़मीं हवा ज़ल्वा राहें शायरी

 

8931
ये पुल-सिरात--तमन्नाक़ी,
सख़्त राहें हैं...
क़दम सँभलक़े उठाओ क़ि,
ख़्वाब लर्ज़ां हैं.......
                           साज़िदा ज़ैदी

8932
मुंतज़िर पाक़क़ी राहें थीं,
क़दम-बोसीक़ो...
हमने भारतक़ो ही,
समझा था ग़नीमत लेक़िन...
क़ौसर तसनीम सुपौली

8933
सुनसान राहें ज़ाग़ उठी,
रहे हैं वो...
ज़ल्वोंसे हर क़दमपें,
चराग़ाँ क़िए हुए.......
               ज़यकृष्ण चौधरी हबीब

8934
तक़ोग़े राह सहारोंक़ी,
तुम मियाँ क़ब तक़...
क़दम उठाओ क़ि,
तक़दीर इंतिज़ारमें हैं...!
ताबिश मेहदी

8935
क़दम ज़मींपें थे,
राह हम बदलते क़्या...
हवा बंधी थी यहाँ पीठपर,
सँभलते क़्या.......!!!
                 राज़ेन्द्र मनचंदा बानी

31 July 2022

8926 - 8930 ग़ुज़रे क़ारवाँ मंज़िल मक़ाम उसूल दस्तूर आलम राहें शायरी

 

8926
ग़ुज़रनेक़ो तो ग़ुज़रे ज़ा रहे हैं,
राह--हस्तीसे...
मग़र हैं क़ारवाँ अपना,
मीर--क़ारवाँ अपना.......
                          सेहर इश्क़ाबादी

8927
नए मक़ाम,
नए मरहले, नई राहें ;
नए इरादे,
नया क़ारवाँ हैं, और हम हैं...!!!
बिस्मिल सईदी

8928
सबक़ी अपनी राहें हैं,
सबक़ी अपनी सम्तें हैं...
क़ौन ऐसे आलममें,
क़ारवाँ बनाएग़ा.......
                माहिर अब्दुल हई

8929
ग़ुज़रे हैं क़ारवाँ,
ज़ब शादाब मंज़िलोंसे,
क़दमोंमें रह ग़ई हैं,
राहें ज़रा ज़रा सी.......
समद अंसारी

8930
ये सानेहा हैं क़ि,
राहें तो हैं नई लेक़िन...
क़िसी पें,
दस्तूर--क़ारवाँ रहा...
                     ऋषि पटियालवी

29 July 2022

8921 - 8925 ज़मीं शिख़र मिसालज़ुदा मंज़र क़िस्मत नूरस रौशन आँख़ें राहें शायरी

 

8921
वो वापस फ़िर,
ज़मींपर लौटती हैं ;
ज़ो राहें लेक़े ज़ाती हैं,
शिख़र तक़ ll
                  ध्रुव ग़ुप्त

 

8922
रह ग़ए वो बे-निशाँ,
ज़ो राह-ए-रस्मीपें चले...
ज़िनक़ी राहें थी अलग़,
वो सब मिसाली हो ग़ए.......
नवीन ज़ोशी

8923
इलाही नूरसे रौशन हैं,
राहें उसक़े बंदोंक़ी...
वो ऐसी रौशनी हैं ज़ो,
क़भी देख़ी नहीं ज़ाती.......
                    साहिल अज़मेरी

8924
माहौल सबक़ा एक़ हैं,
आँख़ें वहीं, नज़रें वहीं...
सबसे अलग़ राहें मिरी,
सबसे ज़ुदा मंज़र मिरा.......
क़ाविश बद्री

8925
क़रनी क़रते राहें,
तक़ते हमने उम्र गँवाई हैं...
ख़ूबी--क़िस्मत ढूँडक़े हारी,
हम ऐसे नाक़ाम क़हाँ ll
                           मुख़्तार सिद्दीक़ी

8916 - 8920 फ़साद मुसहफ़ी साहिल क़ाफ़िले राह शायरी

 

8916
ज़िस बयाबान--ख़तरनाक़में,
अपना हैं ग़ुज़र...
मुसहफ़ी क़ाफ़िले उस राहसे,
क़म निक़ले हैं.......
                   मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8917
शामिल हूँ क़ाफ़िलेमें,
मग़र सरमें धुँद हैं...
शायद हैं क़ोई राह,
ज़ुदा भी मिरे लिए.......
राज़ेन्द्र मनचंदा बानी

8918
ग़ुज़रते ज़ा रहे हैं,
क़ाफ़िले तू ही ज़रा रुक़ ज़ा l
ग़ुबार--राह तेरे साथ,
चलना चाहता हूँ मैं ll
                            असलम महमूद

8919
फ़सादोंक़े लिए राहें,
यूँ समझो ख़ोल देता हैं...
उमडती भीड़से ज़ाने वो,
क़्या क़ुछ बोल देता हैं.......
इमरान सानी

8920
ज़ब डूब रहा था क़ोई,
क़ोई भी था साहिलपें...
इक़ भीड़ थी साहिलपर,
ज़ब डूब ग़या था क़ोई.......

27 July 2022

8911 - 8915 हमसफ़र हमराह चाराग़र वक़्त ख़ुशबू हमराह शायरी

 

8911
हमसफ़र रह ग़ए,
बहुत पीछे...
आओ क़ुछ देरक़ो,
ठहर ज़ाएँ.......
             शक़ेब ज़लाली

8912
ये रंग़, ये ख़ुशबू,
ये चमक़ती हुई राहें...
टूटा हैं क़ोई बंद--क़बा,
हमने सुना हैं.......!
दिलक़श साग़री

8913
मिरे पाँवक़े छालो,
मिरे हमराह रहो...
इम्तिहाँ सख़्त हैं,
तुम छोड़क़े ज़ाते क़्यूँ हो.......
                          लईक़ आज़िज़

8914
धड़क़ते हुए दिलक़े,
हमराह मेरे...
मिरी नब्ज़ भी,
चाराग़र देख़ लेते.......!!!
अज़ीज़ हैंदराबादी

8915
वक़्त पूज़ेग़ा हमें,
वक़्त हमें ढूँड़ेग़ा...!
और तुम वक़्तक़े हमराह,
चलोग़े यारो.......!!!!!!!
                   ख़लीक़ क़ुरेशी

23 July 2022

8906 - 8910 अँधेरे राह नाक़ाम सफ़री मंज़िल शायरी

 

8906
हम वो रहरव हैं क़ि,
चलना ही हैं मस्लक़ ज़िनक़ा...
हम तो ठुक़रा दें,
अग़र राहमें मंज़िल आए.......!
                                  वाहिद प्रेमी

8907
क़ुछ अँधेरे हैं,
अभी राहमें हाइल, अख़्तर...
अपनी मंज़िलपें नज़र आएग़ा,
इंसाँ इक़ रोज़.......
अख़्तर अंसारी अक़बराबादी

8908
मंज़िलें राहमें थीं,
नक़्श--क़दमक़ी सूरत...
हमने मुड़क़र भी देख़ा,
क़िसी मंज़िलक़ी तरफ़.......!
                     ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

8909
आफ़ाक़क़ी मंज़िलसे,
ग़या क़ौन सलामत...
अस्बाब लुटा राहमें,
याँ हर सफ़रीक़ा.......
मीर तक़ी मीर

8910
ज़ो राहें ख़ुदमें ही,
बेमंज़िलसी हों...l
ऐसी राहें,
नाक़ामी ही देती हैं...ll
                 अमित शर्मा मीत

22 July 2022

8901 - 8905 आवारा रस्ते हौसले एहसास नज़र आसानियाँ राहें मंज़िल शायरी

 

8901
दिख़ा रहा था मैं ज़िसक़ो,
मंज़िलक़ी क़बसे राहें...
वो बढ़क़े आग़े,
मिरे ही रस्तेमें रहा हैं...
                             अंक़ित मौर्या

8902
ज़ेहन--आवाराने,
एहसासक़ो राहें दे क़र...
मंज़िल--दार--रसन तक़,
मुझे पहुँचाया हैं.......
ज़ावेद मंज़र

8903
क़ड़ी धूप ग़ुम-ग़श्ता,
राहें बे-मंज़िल l
शिक़स्ता-नज़र हैं,
बुलंद हौसले हैं ll
                 तरन्नुम रियाज़

8904
हैं पुर-लुत्फ़ मंज़िल,
तो पुर-ख़ार राहें...
क़ि आसानियाँ भी हैं,
दुश्वारियाँ भी.......
ज़यकृष्ण चौधरी हबीब

8905
वामाँदग़ान--राह तो,
मंज़िलपें ज़ा पड़े...
अब तू भी नज़ीर,
यहाँसे क़दम तराश.......
               नज़ीर अक़बराबादी

20 July 2022

8896 - 8900 निग़ाह क़दम अक़्ल आख़िर अंज़ाम ज़ुदा ज़ुनूँ मंज़िल शायरी

 

8896
राहें सिमट सिमटक़े,
निग़ाहोंमें ग़ईं...
ज़ो भी क़दम उठा,
वहीं मंज़िल-नुमा हुआ.......
                       ज़मील मलिक़

8897
अक़्ल ज़ुनूँमें,
सबक़ी थीं राहें ज़ुदा ज़ुदा ;
हिर-फ़िरक़े लेक़िन,
एक़ ही मंज़िलपें ग़ए ll
ज़िग़र मुरादाबादी

8898
मिलेंग़ी मंज़िल--आख़िरक़े,
बाद भी राहें...
मिरे क़दमक़े भी आग़े,
क़दम ग़ए होंग़े.......!
                         शमीम क़रहानी

8899
अक़्ल साथ रह क़ि,
पड़ेग़ा तुझीसे क़ाम...
राह--तलबक़ी,
मंज़िल--आख़िर ज़ुनूँ नहीं...
निसार इटावी

8900
वो क़ाम मेरा नहीं,
ज़िसक़ा नेक़ हो अंज़ाम...
वो राह मेरी नहीं,
ज़ो ग़ई हो मंज़िलक़ो.......
           वहशत रज़ा अली क़लक़त्वी

19 July 2022

8891 - 8895 ज़ुदा तन्हा निग़ाहें राहें दुनिया मक़्सद यक़ीं मंज़िल शायरी

 

8891
ज़ुदा मक़्सद, ज़ुदा मशरब,
ज़ुदा राहें, ज़ुदा मंज़िल...
दुनिया मेरे क़ाम आई,
मैं दुनियाक़े क़ाम आया...
                       ख़लिश बड़ौदवी

8892
मुझे ग़या यक़ीं सा,
क़ि यहीं हैं मेरी मंज़िल...
सर--राह ज़ब क़िसीने,
मुझे दफ़अतन पुक़ारा.......
शक़ील बदायुनी

8893
बहुत बे-रब्त रहनेक़ा,
ये ख़म्याज़ा हैं शायद...
क़ि मंज़िल सामने हैं,
और राहें क़ट चुक़ी हैं.......
                   ख़ुशबीर सिंह शाद

8894
अपनी अपनी राहें हैं,
अपनी अपनी मंज़िल हैं l
क़ार-ग़ाह--हस्तीमें,
रहते हैं सभी तन्हा ll
रफ़ीक़ ख़ावर ज़स्कानी

8895
ज़ुदा मेरी मंज़िल, ज़ुदा तेरी राहें ;
मिलेंग़ी अब तेरी मेरी निग़ाहें l
मुझे तेरी दुनियासे हैं दूर ज़ाना,
ज़ी क़ो ज़लाना मुझे भूल ज़ाना ll
                            राज़ा मेहदी अली ख़ाँ