4901
ज़लज़ले भी बड़े
गहरे हैं,
ज़िन्दगीके साहब...
लोग अक्सर छोड़ जाते
हैं,
अपना कहकर.......
4902
सिर्फ यारियाँ ही रह
जाती हैं मुनाफ़ा
बनके,
वर्ना ज़िन्दगीके सौदोंमें नुक़सान बहुत हैं l
बहुत ग़जबका
नज़ारा हैं इस
अजीबसी दुनियाका,
लोग सबकुछ बटोरनेमें
लगे हैं खाली
हाथ जानेके
लियेll
4903
नेकियाँ
खरीदी हैं हमने,
अपनी शोहरतें गिरवी
रखकर...
कभी फुर्सतमें मिलना
ऐ ज़िन्दगी,
तेरा
भी हिसाब भी
कर देंगे...!
4904
ज़िन्दगीमें सारा झगड़ा
ही,
ख़्वाहिशोंका हैं...
ना तो किसीको गम
चाहिए,
ना ही किसीको कम चाहिए...
4905
छीन लिया जब
ज़िन्दगीने,
ख़्वाहिशोंको मुझसे,
पैर मेरे ख़ुद-ब-ख़ुद...
चादरके अंदर आ
गये...!