29 July 2022

8921 - 8925 ज़मीं शिख़र मिसालज़ुदा मंज़र क़िस्मत नूरस रौशन आँख़ें राहें शायरी

 

8921
वो वापस फ़िर,
ज़मींपर लौटती हैं ;
ज़ो राहें लेक़े ज़ाती हैं,
शिख़र तक़ ll
                  ध्रुव ग़ुप्त

 

8922
रह ग़ए वो बे-निशाँ,
ज़ो राह-ए-रस्मीपें चले...
ज़िनक़ी राहें थी अलग़,
वो सब मिसाली हो ग़ए.......
नवीन ज़ोशी

8923
इलाही नूरसे रौशन हैं,
राहें उसक़े बंदोंक़ी...
वो ऐसी रौशनी हैं ज़ो,
क़भी देख़ी नहीं ज़ाती.......
                    साहिल अज़मेरी

8924
माहौल सबक़ा एक़ हैं,
आँख़ें वहीं, नज़रें वहीं...
सबसे अलग़ राहें मिरी,
सबसे ज़ुदा मंज़र मिरा.......
क़ाविश बद्री

8925
क़रनी क़रते राहें,
तक़ते हमने उम्र गँवाई हैं...
ख़ूबी--क़िस्मत ढूँडक़े हारी,
हम ऐसे नाक़ाम क़हाँ ll
                           मुख़्तार सिद्दीक़ी

8916 - 8920 फ़साद मुसहफ़ी साहिल क़ाफ़िले राह शायरी

 

8916
ज़िस बयाबान--ख़तरनाक़में,
अपना हैं ग़ुज़र...
मुसहफ़ी क़ाफ़िले उस राहसे,
क़म निक़ले हैं.......
                   मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8917
शामिल हूँ क़ाफ़िलेमें,
मग़र सरमें धुँद हैं...
शायद हैं क़ोई राह,
ज़ुदा भी मिरे लिए.......
राज़ेन्द्र मनचंदा बानी

8918
ग़ुज़रते ज़ा रहे हैं,
क़ाफ़िले तू ही ज़रा रुक़ ज़ा l
ग़ुबार--राह तेरे साथ,
चलना चाहता हूँ मैं ll
                            असलम महमूद

8919
फ़सादोंक़े लिए राहें,
यूँ समझो ख़ोल देता हैं...
उमडती भीड़से ज़ाने वो,
क़्या क़ुछ बोल देता हैं.......
इमरान सानी

8920
ज़ब डूब रहा था क़ोई,
क़ोई भी था साहिलपें...
इक़ भीड़ थी साहिलपर,
ज़ब डूब ग़या था क़ोई.......

27 July 2022

8911 - 8915 हमसफ़र हमराह चाराग़र वक़्त ख़ुशबू हमराह शायरी

 

8911
हमसफ़र रह ग़ए,
बहुत पीछे...
आओ क़ुछ देरक़ो,
ठहर ज़ाएँ.......
             शक़ेब ज़लाली

8912
ये रंग़, ये ख़ुशबू,
ये चमक़ती हुई राहें...
टूटा हैं क़ोई बंद--क़बा,
हमने सुना हैं.......!
दिलक़श साग़री

8913
मिरे पाँवक़े छालो,
मिरे हमराह रहो...
इम्तिहाँ सख़्त हैं,
तुम छोड़क़े ज़ाते क़्यूँ हो.......
                          लईक़ आज़िज़

8914
धड़क़ते हुए दिलक़े,
हमराह मेरे...
मिरी नब्ज़ भी,
चाराग़र देख़ लेते.......!!!
अज़ीज़ हैंदराबादी

8915
वक़्त पूज़ेग़ा हमें,
वक़्त हमें ढूँड़ेग़ा...!
और तुम वक़्तक़े हमराह,
चलोग़े यारो.......!!!!!!!
                   ख़लीक़ क़ुरेशी

23 July 2022

8906 - 8910 अँधेरे राह नाक़ाम सफ़री मंज़िल शायरी

 

8906
हम वो रहरव हैं क़ि,
चलना ही हैं मस्लक़ ज़िनक़ा...
हम तो ठुक़रा दें,
अग़र राहमें मंज़िल आए.......!
                                  वाहिद प्रेमी

8907
क़ुछ अँधेरे हैं,
अभी राहमें हाइल, अख़्तर...
अपनी मंज़िलपें नज़र आएग़ा,
इंसाँ इक़ रोज़.......
अख़्तर अंसारी अक़बराबादी

8908
मंज़िलें राहमें थीं,
नक़्श--क़दमक़ी सूरत...
हमने मुड़क़र भी देख़ा,
क़िसी मंज़िलक़ी तरफ़.......!
                     ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

8909
आफ़ाक़क़ी मंज़िलसे,
ग़या क़ौन सलामत...
अस्बाब लुटा राहमें,
याँ हर सफ़रीक़ा.......
मीर तक़ी मीर

8910
ज़ो राहें ख़ुदमें ही,
बेमंज़िलसी हों...l
ऐसी राहें,
नाक़ामी ही देती हैं...ll
                 अमित शर्मा मीत

22 July 2022

8901 - 8905 आवारा रस्ते हौसले एहसास नज़र आसानियाँ राहें मंज़िल शायरी

 

8901
दिख़ा रहा था मैं ज़िसक़ो,
मंज़िलक़ी क़बसे राहें...
वो बढ़क़े आग़े,
मिरे ही रस्तेमें रहा हैं...
                             अंक़ित मौर्या

8902
ज़ेहन--आवाराने,
एहसासक़ो राहें दे क़र...
मंज़िल--दार--रसन तक़,
मुझे पहुँचाया हैं.......
ज़ावेद मंज़र

8903
क़ड़ी धूप ग़ुम-ग़श्ता,
राहें बे-मंज़िल l
शिक़स्ता-नज़र हैं,
बुलंद हौसले हैं ll
                 तरन्नुम रियाज़

8904
हैं पुर-लुत्फ़ मंज़िल,
तो पुर-ख़ार राहें...
क़ि आसानियाँ भी हैं,
दुश्वारियाँ भी.......
ज़यकृष्ण चौधरी हबीब

8905
वामाँदग़ान--राह तो,
मंज़िलपें ज़ा पड़े...
अब तू भी नज़ीर,
यहाँसे क़दम तराश.......
               नज़ीर अक़बराबादी

20 July 2022

8896 - 8900 निग़ाह क़दम अक़्ल आख़िर अंज़ाम ज़ुदा ज़ुनूँ मंज़िल शायरी

 

8896
राहें सिमट सिमटक़े,
निग़ाहोंमें ग़ईं...
ज़ो भी क़दम उठा,
वहीं मंज़िल-नुमा हुआ.......
                       ज़मील मलिक़

8897
अक़्ल ज़ुनूँमें,
सबक़ी थीं राहें ज़ुदा ज़ुदा ;
हिर-फ़िरक़े लेक़िन,
एक़ ही मंज़िलपें ग़ए ll
ज़िग़र मुरादाबादी

8898
मिलेंग़ी मंज़िल--आख़िरक़े,
बाद भी राहें...
मिरे क़दमक़े भी आग़े,
क़दम ग़ए होंग़े.......!
                         शमीम क़रहानी

8899
अक़्ल साथ रह क़ि,
पड़ेग़ा तुझीसे क़ाम...
राह--तलबक़ी,
मंज़िल--आख़िर ज़ुनूँ नहीं...
निसार इटावी

8900
वो क़ाम मेरा नहीं,
ज़िसक़ा नेक़ हो अंज़ाम...
वो राह मेरी नहीं,
ज़ो ग़ई हो मंज़िलक़ो.......
           वहशत रज़ा अली क़लक़त्वी

19 July 2022

8891 - 8895 ज़ुदा तन्हा निग़ाहें राहें दुनिया मक़्सद यक़ीं मंज़िल शायरी

 

8891
ज़ुदा मक़्सद, ज़ुदा मशरब,
ज़ुदा राहें, ज़ुदा मंज़िल...
दुनिया मेरे क़ाम आई,
मैं दुनियाक़े क़ाम आया...
                       ख़लिश बड़ौदवी

8892
मुझे ग़या यक़ीं सा,
क़ि यहीं हैं मेरी मंज़िल...
सर--राह ज़ब क़िसीने,
मुझे दफ़अतन पुक़ारा.......
शक़ील बदायुनी

8893
बहुत बे-रब्त रहनेक़ा,
ये ख़म्याज़ा हैं शायद...
क़ि मंज़िल सामने हैं,
और राहें क़ट चुक़ी हैं.......
                   ख़ुशबीर सिंह शाद

8894
अपनी अपनी राहें हैं,
अपनी अपनी मंज़िल हैं l
क़ार-ग़ाह--हस्तीमें,
रहते हैं सभी तन्हा ll
रफ़ीक़ ख़ावर ज़स्कानी

8895
ज़ुदा मेरी मंज़िल, ज़ुदा तेरी राहें ;
मिलेंग़ी अब तेरी मेरी निग़ाहें l
मुझे तेरी दुनियासे हैं दूर ज़ाना,
ज़ी क़ो ज़लाना मुझे भूल ज़ाना ll
                            राज़ा मेहदी अली ख़ाँ

8886 - 8890 महफ़ूज़ इल्ज़ाम तलाश तमन्ना क़दम मंज़िल शौक़ शायरी

 

8886
अभी तो शौक़क़ी राहोंमें,
ख़ो ज़ाना भी मुमक़िन हैं...
क़ि ये राहें अभी महफ़ूज़ हैं,
इल्ज़ाम--मंज़िलसे.......
                        शाहिद सिद्दीक़ी

8887
वो मंज़िल-ग़ह--मज़नूँ हैं,
वो वादी--नज़्द l
रह-रव--शौक़--तमन्ना क़ी हैं,
राहें मसदूद ll
बशीर फ़ारूक़

8888
सख़्ती--राह ख़ींचिए,
मंज़िलक़े शौक़में...
आरामक़ी तलाशमें,
ईज़ा उठाइए.......
                  हैंदर अली आतिश

8889
सिर्फ़ इक़ क़दम उठा था,
ग़लत राह--शौक़में...
मंज़िल तमाम उम्र,
मुझे ढूँढती रही.......!
अब्दुल हमीद अदम

8890
नक़्श--पा--रफ़्तगाँसे,
रही हैं ये सदा...
दो क़दममें राह तय हैं,
शौक़--मंज़िल चाहिए.......

17 July 2022

8881 - 8885 सहरा मसर्रत बदन तक़लीफ़ राह राग़ तारीक़ी मोहब्बत मंज़िल शायरी

 

8881
उसीक़े राग़से गूंजेंग़े,
क़ल राहें मसर्रतक़ी...
ये माना आज़ इंसाँ,
मंज़िल--आह--फ़ुग़ाँमें हैं...
                         निहाल सेवहारवी

8882
मैं तेरी मंज़िल--जाँ तक़,
पहुँच तो सक़ता हूँ ;
मग़र ये राह,
बदनक़ी तरफ़से आती हैं !!!
इरफ़ान सिद्दीक़ी

8883
रहरव--राह--मोहब्बत,
रह ज़ाना राहमें,
लज़्ज़त--सहरा-नवर्दी,
दूरी--मंज़िलमें हैं.......ll
                   बिस्मिल अज़ीमाबादी

8884
तारीक़ीमें दीप ज़लाए,
इंसाँ क़ितना प्यारा हैं...l
राहें ढूँडे मंज़िल पाए,
इंसाँ क़ितना प्यारा हैं...ll
ओवेस अहमद दौराँ

8885
अबक़ी ज़ो राह--मोहब्बतमें,
उठाई तक़लीफ़ l
सख़्त होती हमें मंज़िल,
क़भी ऐसी तो थी ll
                          बहादुर शाह ज़फ़र

16 July 2022

8876 - 8880 हर्फ़ ग़लत मंज़िल नज़र ग़ुमशुदग़ी राहनुमा शायरी

 

8876
हर्फ़--ग़लतक़ी तरह,
मिटे ज़ाते हैं नुक़ूश...
राहें तमाम,
राहनुमाओंक़ी ज़दमें हैं...
                         यावर वारसी

8877
क़हाँक़ा रहनुमा,
और क़ैसी राहें...
ज़िधर बढ़ता हूँ,
मंज़िल देख़ता हूँ.......!
असरार-उल-हक़ मज़ाज़

8878
क़हीं भी राहनुमा,
अब नज़र नहीं आता ;
मैं क़्या बताऊँ क़ि,
हूँ क़ौनसी ज़िहातमें ग़ुम.......
                  अबरार क़िरतपुरी

8879
मंज़िलपें नज़र आई,
बहुत दूरी--मंज़िल l
बेसाख़्ता आने लग़े,
सब राहनुमा याद ll
अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ

8880
ग़ुमशुदग़ी ही अस्लमें यारों,
राहनुमाई क़रती हैं...
राह दिख़ाने वाले पहले,
बरसों राह भटक़ते हैं.......!
                          हफ़ीज़ बनारसी

15 July 2022

8871 - 8875 दिल ज़ुल्म सितम राह शायरी

 

8871
क़ाबा सौ बार,
वो ग़या तो क़्या...
ज़िसने याँ एक़ दिलमें,
राह क़ी.......

8872
दैरसे क़ाबा ग़ए,
क़ाबासे माबदग़ाहमें...
ख़ाक़ भी पाया नहीं,
दैर--हरम क़ी राहमें.......
मिस्कीन शाह


8873
शहर--सितम,
छोड़क़े ज़ाते हुए लोग़ो,
अब राहमें क़ोई भी,
मदीना नहीं आता.......
                     अज़हर अदीब

8874
मस्ज़िदक़ी सर--राह,
बिना डाल ज़ाहिद...
इस रोक़से होनेक़े,
नहीं क़ू--बुताँ बंद.......
मुबारक़ अज़ीमाबादी

8875
अपने लिए अब एक़ ही,
राह नज़ात हैं...
हर ज़ुल्मक़ो रज़ा--ख़ुदा,
क़ह लिया क़रो.......
                        क़तील शिफ़ाई